हरणी में कभी जंगल हुआ करता था हरणी महादेव मंदिर कभी गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। यहां कभी जंगल हुआ करता था। राजा-महाराजा इस वन में शिकार के लिए आते थे। एक बार राजा को मिट्टी टीले दिखे। इन्हें खोदा तो शिव, पार्वती व गणेश की मूर्तियां दिखाई दी। राजा उन्हें ले जाने लगा, लेकिन सफल नहीं हुए। बाद में भीलवाड़ा के दरक परिवार के सोकरण, रामकरण, पन्ना लाल व छगन लाल ने गुफा में स्थित भगवान की पूजा-अर्चना का दायित्व हरणी गांव के ब्राह्मणों को दिया। हरणी गांव के पास होने से इसका नाम हरणी महादेव हो गया। मंदिर के देख-रेख आज भी दरक परिवार करता है।
मंदिर का धार्मिक महत्व हरणी महादेव मंदिर का अपना एक अलग धार्मिक महत्व है। यहां हर साल शिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेला भरता है। सावन माह में भक्त विभिन्न धार्मिक संस्कार करते हैं। पहाड़ी की चोटी पर ‘चामुंडामाता’ का मंदिर स्थित है जहां से शहर का पूरा दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर सड़क से जुड़ा हुआ है। हरणी महादेव में शिवलिंग के साथ एक पीतल का नंदी (शिव का वाहन) भी है। शिव का वाहन नंदी को माना जाता है।