रानियों के जौहर की कहानियां आपने भी सुनी होंगी। ऐसी ही एक शौर्यगाथा है रानी मणिमाला और उनकी हजारों क्षत्राणियों की जिन्होंने बाबर की शरण में जाने से बेहतर जौहर करना समझा। चंदेरी का सबसे चर्चित इतिहास यही है। यहां आज भी रानी मणिमाला और हजारों क्षत्राणियों का जौहर स्मारक है, जो उनके साहस और बलिदान की गाथा सुनाता है।
ये वही दौर था जब चंदेरी में महाराजा मेदिनीराय का शासन था। तब बाबर ने चंदेरी पर हमला किया था। इस दौरान हजारों सैनिकों के साथ वहां के राजा मेदिनीराय ने बाबर का जमकर सामना किया। लेकिन जल्द ही बाबर की सेना ने किले को चारों तरफ से घेर लिया। रात के पांचवें पहर में तोपों के साथ बाबर की सेना किले में प्रवेश कर गई।
महारानी मणिमाला से अंतिन विदाई लेकर महाराज मेदिनीराय दोबारा युद्ध के मैदान में उतर गए। बाबर की तोपों से बेफिक्र महाराज और उनकी सेना ने बाबर की सेना को खदेड़ना चाहा, लेकिन मेदिनीराय इस दौरान घायल हो गए और जमीन पर गिर पड़े। जब सेना के सिपाही महाराज को किले की ओर ले गए, तब बाबर ने चंदेरी पर तुर्क का झंडा फहरा दिया।
तुर्क के दूतों को दिया जवाब
महल के द्वार पर तुर्क के दूत भेजे गए, महारानी मणिमाला से कहा गया कि वे हार स्वीकार कर लें और बाबर के साथ संधि, लेकिन मणिमाला ने बड़ी वीरता से जवाब दिया कि संधि ही करनी थी तो इतने लोगों को क्यों मारा गया। हम इनकी विधवाओं को क्या जवाब देंगे? दूत के जाने के बाद मणिमाला का एक इशारा मिलते ही मिलरिया ताल के किनारे बनी विशाल चंदा में महारानी मणिमाला ने 1600 वीरांगनाओं ने अपनी आहूति देते हुए जौहर को अंजाम दिया।