ये भी पढें – पहली बार सोना इतना महंगा, यहां देखें सोना-चांदी के ताजा भाव शिव के पसीने से जन्मी मां नर्मदा
मां नर्मदा(Narmada Jayanti 2025) की उत्पत्ति को लेकर लोगों के बीच कई धार्मिक मान्यताएं और कथाएं प्रचलित है। एक मान्यता के अनुसार, नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है। शिवजी ने उन्हें अविनाशी होने का वरदान देकर धरती पर भेजा था। शिवजी(Lord Shiva) के निर्देश पर धरती में आने के कारण मां नर्मदा को शंकरी नर्मदा भी कहा जाता है। कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव तपस्या कर रहे थे तब उनके पसीने से मां नर्मदा प्रकट हुई।
मां नर्मदा ने प्रकट होकर अपने अलौकिक सौंदर्य से कई चमत्कारी लीलाएं प्रस्तुत की, जिससे भगवान शिव(Lord Shiva) और माता पार्वती हैरान रह गए। शिव-पार्वती ने ही उन्हें नर्मदा नाम दिया। नर्म का अर्थ है सुख और दा का अर्थ है देने वाली। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। आज मंगलवार 4 फरवरी 2025 को नर्मदा जयंती है।
ये भी पढें – 8 फरवरी को आएगा नया पश्चिमी विक्षोभ, जानिए कैसा होगा मौसम जन्मोत्सव के दौरान, भक्त उनकी विशेष पूजा अर्चना करते हैं। नदी के किनारे दीपदान किया जाता है, और भजन कीर्तन का आयोजन होता है। यह उत्सव हमें मां नर्मदा के महत्व को समझाने और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने की प्रेरणा देता है।
मां नर्मदा की अविराम यात्रा
बता दें कि मां नर्मदा(Narmada Jayanti 2025) का उद्गम स्थल अमरकंटक है, जो अपने आप में एक दिव्य स्थान है। यहां से निकलकर, मां नर्मदा अपनी अविराम यात्रा करती हुई, कई राज्यों को सीचती हैं, और अंत में समुद्र में मिल जाती हैं। उनकी यात्रा में कई तीर्थस्थल आते हैं, जिनका अपना महत्व है। इनमें महेश्वर, ओंकारेश्वर, और जबलपुर जैसे प्रमुख स्थल शामिल हैं। ये भी पढें – 5200 करोड़ से चमकेंगे इंदौर की ट्रेनें, मुख्य स्टेशन का होगा री-डेवलेपमेंट जबलपुर में भेडाघाट पर मां नर्मदा का मनमोहक रूप देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। यहाँ की संगमरमर की चट्टानों के बीच से बहती नर्मदा का दृश्य अत्यंत भव्य और अलौकिक होता है। पूर्णिमा की रात यहां नौका विहार करना एक अद्भुत अनुभव होता है, जब चांद की चांदनी में चमकती चट्टानें और नर्मदा का जल एक अपूर्व छटा पैदा करते हैं।