चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु की डिवीजन बेंच ने कहा कि जनहित याचिकाएं (पीआईएल) सार्वजनिक सरोकार के मुद्दों को और न्याय को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए। जनहित याचिका में अगर व्यक्तिगत हित शामिल हो तो यह चलने योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने जनहित की आड़ में इस न्यायालय से ऐसे निर्देश मांगे जो राज्य की विधायी और कार्यकारी नीति के दायरे में आते हैं।
यह है मामला
याचिकाकर्ता एसए. काले ने जनहित याचिका दायर कर भांग की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य शासन को निर्देशित करने की मांग हाईकोर्ट से की थी। याचिका में भांग के औषधीय और पर्यावरणीय लाभ गिनाए गए। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने 22 फरवरी 2024 को सभी संबंधित अधिकारियों को इस संबंध में व्यक्तिगत रूप से ज्ञापन भी दिए है। इसमें भांग के फायदों पर प्रकाश डाला है, जो कई शोधों और सरकारी रिपोर्टों द्वारा समर्थित हैं। इसकी खेती से किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुधरने का दावा करते हुए याचिकाकर्ता ने इसे ऽ गोल्डन प्लांटऽ कहा। प्रदेश में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति पर जताई चिंता, नुकसान गिनाए
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि
छत्तीसगढ़ राज्य में मादक पदार्थों का सेवन हाल के वर्षों में कई गुना बढ़ गया है। इसका सेवन करने वाले व्यक्ति के शरीर और दिमाग पर न केवल बुरा प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह पूरे परिवार और समाज को भी बर्बाद कर देता है। राज्य में तस्करी और मनोविकार नाशक पदार्थों से संबंधित अपराध बढ़ रहे हैं।
ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें अपराधी नशे की हालत में अपने कृत्य के परिणामों को समझे बिना अपराध कर बैठते हैं। इससे न केवल अपराधी को जेल जाना पड़ता है, बल्कि पूरा परिवार भी बर्बाद हो जाता है, क्योंकि जब एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति जेल में बंद होता है, तो उसका परिवार सबसे ज्यादा पीड़ित होता है।
याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना कोर्ट ने
याचिका में आगे तर्क दिया गया कि नारकोटिक्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 (संक्षेप में, %एनडीपीएस अधिनियम%) के अनुसार बागवानी और औद्योगिक उपयोगों के लिए भांग की बड़े पैमाने पर खेती भारतीय कानून में स्वीकृत है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिका खारिज करते हुए कहा कि वर्तमान याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कहा जा सकता है।