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छतरपुर

मशीनों से कराए जा रहे पंचायतों के काम, फर्जी मास्टर में दिखाए जा रहे मजदूरों से काम

अधिकांश ग्राम पंचायतों में जॉब कार्डधारी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। इसके परिणामस्वरूप मजदूरों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

छतरपुरApr 29, 2025 / 10:15 am

Dharmendra Singh

khet talab

खेत तालाब खोदने में इस्तेमाल हुई मशीनों के निशान

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा योजना के तहत मजदूरों को काम दिलाने के उद्देश्य से शासन की ओर से विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन इन योजनाओं में बड़े पैमाने पर लापरवाही और फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। मनरेगा के तहत मजदूरों को कम से कम 100 दिनों का रोजगार देने का प्रावधान है, लेकिन जिले के अधिकांश ग्राम पंचायतों में जॉब कार्डधारी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। इसके परिणामस्वरूप मजदूरों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम की कमी के कारण मजदूरों का पलायन जारी है, और प्रशासनिक अधिकारी मशीनों से काम कराकर जॉब कार्डधारी मजदूरों को रोजगार के अवसर से वंचित कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा मशीनों से काम कराने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है, जबकि मनरेगा के नियमों के तहत इस तरह के कार्य की अनुमति नहीं है।

मशीनों से हो रहे कार्य और उसकी जांच

जिले की जनपद पंचायत नौगांव में अधिकारियों की मिलीभगत से मजदूरों की रोजी-रोटी छीनी जा रही है। नौगांव विकासखंड में बनाए जा रहे तालाबों, मेड़बंदी और अन्य कार्यों को जल्दबाजी में पूरा करने के लिए मशीनों का उपयोग किया जा रहा है। मनरेगा के तहत इन कार्यों को हाथों से कराया जाना चाहिए था, लेकिन मशीनों से कार्य कराए जाने से मजदूरों को काम नहीं मिल पा रहा है।

इन पंचायतों में गड़बड़ी की शिकायतें

जनपद पंचायत और जिला पंचायत स्तर पर कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन जांच के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। उदाहरण के तौर पर, ग्राम पंचायतों जैसे रानीपुरा, चिरवारी, कराठा, कैथोकर, लहदरा, परेथा, गलान, मवइया, सरसेड़, काकुनपुरा में मशीनों से मनरेगा के कार्य कराए जा रहे हैं और यह स्थिति लगातार बनी हुई है।

मशीनों से काम कराना और फर्जीवाड़ा

पंचायतों में मनरेगा के तहत मशीनों से कार्य कराए जाने की एक प्रमुख वजह यह है कि इसे जल्दी पूरा किया जा सकता है, जबकि यह नियमों का उल्लंघन है। जेसीबी और बुलडोजर मशीनों द्वारा तालाबों की खुदाई की तस्वीरें सामने आई हैं, जो यह साबित करती हैं कि मनरेगा के तहत काम नहीं हो रहा है। इसके कारण मजदूरों को खुदाई और अन्य शारीरिक श्रम से वंचित किया जा रहा है। मनरेगा के नियमों के तहत, मशीनों से काम कराना अस्वीकार्य है, लेकिन अधिकारी इसे एक जन सहयोग और सीएसआर फंड के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके माध्यम से वे नियमों की अनदेखी कर रहे हैं और मजदूरों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।

ये कह रहे जिम्मेदार अफसर

यह समस्या तब और गहरी हो जाती है जब जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। सीईओ डॉ. हरीश केसरवानी, नौगाव जनपद पंचायत के प्रमुख अधिकारी ने इस मामले में कहा, पंचायतों में जो काम मशीनों से चल रहे हैं, उन कामों की जांच की जाएगी। संबंधित उपयंत्री को भेजकर जांच कराई जाएगी और नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

बार बार शिकायतों का हवाला

हालांकि, यह सवाल उठता है कि जब शिकायतें पहले ही की जा चुकी हैं और मामले की जानकारी अधिकारियों को है, तो अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? इस स्थिति का एक और गंभीर परिणाम है, मजदूरों का महानगरों की ओर पलायन। पंचायतों में काम नहीं मिलने के कारण लोग अन्य स्थानों पर काम की तलाश में निकल जाते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। प्रशासन के इस कृत्य के कारण जहां एक ओर मजदूरों की रोजी-रोटी छिन रही है, वहीं दूसरी ओर पूरे जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन की समस्या गंभीर रूप ले रही है।

सुधार की जरूरत

ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें उम्मीद थी कि मनरेगा योजना उनके लिए रोजगार का साधन बनेगी, लेकिन अब यह योजना पूरी तरह से विफल होती दिखाई दे रही है। अधिकारियों की लापरवाही और नियमों का उल्लंघन करने से न सिर्फ ग्रामीणों को काम नहीं मिल रहा है, बल्कि उनकी गरीबी और कठिनाइयों में भी इजाफा हो रहा है। इस स्थिति में, अगर प्रशासन ने तुरंत सुधारात्मक कदम नहीं उठाए तो जिले में पलायन और गरीबी की समस्या और भी बढ़ सकती है।

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