परीक्षा के अंक केवल एक परीक्षा के परिणाम हैं, न कि किसी के जीवन की अंतिम पहचान। सफलता और असफलता दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं और इनसे ही इंसान संवरता, सीखता और आगे बढ़ता है। हर विद्यार्थी की सीखने की गति, परिस्थितियां और मानसिक अवस्था अलग होती है। किसी ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच पढ़ाई की, तो कोई बीमारी या मानसिक दबाव से जूझता रहा। परीक्षा का परिणाम इन तमाम संघर्षों की कहानी को नहीं दर्शाता। यह केवल एक उत्तर पुस्तिका में दिए गए उत्तरों का मूल्यांकन करता है। इसलिए इस एक परीक्षा को अपनी सम्पूर्ण योग्यता का मापदंड मान लेना उचित नहीं होगा। असफलता से घबराने या निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में बड़े-बड़े बदलाव और सफलताएं उन्हीं लोगों को मिली हैं जिन्होंने कठिन समय में भी हार नहीं मानी।
यह समय विद्यार्थियों के लिए आत्ममंथन का है और माता-पिता के लिए अपने बच्चों को सबसे अधिक सहारा देने का है। उन्हें यह अहसास दिलाने की जरूरत है कि वे केवल नंबरों से नहीं, बल्कि अपने प्रयासों, संस्कारों और मूल्यों से पहचाने जाते हैं। अब जरूरी है कि विद्यार्थी खुद पर विश्वास बनाए रखें। परिणाम की समीक्षा करें, अपनी कमजोरियों को पहचानें और उन्हें सुधारने के लिए ठोस योजना बनाएं। लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बार-बार प्रयास जरूरी होते हैं। रास्ते में गिरना, ठोकर खाना, थक जाना, यह सब स्वाभाविक है, लेकिन सबसे जरूरी है फिर से उठ खड़े होना। जो विद्यार्थी आज असफल हुए हैं, वे भी कल सफल होंगे। याद रखें, एक परीक्षा में कम अंक मिलना आपकी मंजिल से भटकना नहीं है, यह तो बस रुककर सांस लेने और फिर से दौडऩे का मौका है।