जबकि कुछ साल पहले बीहड़ों और खाईयों में बहने वाली इस नदी का क्षेत्र कभी चंबल के दस्युओं के लिए बदनाम रहा था। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है और पर्यटक भी वन्यजीवों के नजारे के लिए यहां पहुंच रहे हैं। बता दें कि जलीय जीवों को संरक्षित करने के लिए केन्द्र सरकार ने चम्बल नदी के 435 किलोमीटर क्षेत्र को साल 1978 में राष्ट्रीय चम्बल घडिय़ाल अभ्यारण्य स्थापित किया था।
चंबल में लुप्त होने के कगार पर थे घड़ियाल
तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में बहने वाली चंबल नदी में किसी समय घडिय़ाल लुप्त प्रजाति हो गई थी। नदी को 1979 में गंभीर रूप से लुप्तप्राय घडिय़ालों के संरक्षण के लिए नामित किया गया था। उस समय इनकी आबादी 250 थी जो साल 2024 में बढकऱ 2456 हो चुकी है। इसी तरह मगरमच्छ 928 और डॉल्फिन की संख्या 111 तक पहुंच गई है। जो सेंचुरी में बेहतर संरक्षण को दर्शाती है। वहीं, 2015 से भारतीय स्कीमर की जनसंख्या 224 से बढकऱ 843 पहुंच चुकी है। यूं होती है जलीय जीवों की गणना
जलीय जीवों की गणना में वन्यजीवों से अधिक समय लगता है। यह पूरी गणना नाव के जरिए होती है। इसमें 20 से 25 दिन लग जाते हैं। जलीय जीव विशेषज्ञ अपनी नाब को नदी में एक स्थान पर रोककर फिर पानी के अंदर हो रही हलचल पर नजर रखते हैं। ये घडिय़ाल, कछुआ व मगरमच्छ की मैन्युअली गिनती करते हैं। वहीं, डॉल्फिन के लिए ट्रांसमीटर रिसीवर का उपयोग किया जाता है। इसकी वजह डॉल्फिन के गहरेे पानी में रहना।
अवैध बजरी खनन से पहुंच रहा नुकसान
चंबल का क्षेत्र कुछ समय अवैध बजरी के लिए बदनाम हो रहा है। एमपी और राजस्थान की सीमा पर नदी से जमकर बजरी का अवैध खनन हो रहा है। इस खनन से विशेषकर घडिय़ालों के ठिकानों को नुकसान पहुंच रहा है। घडिय़ाल प्रजनन काल के दौरान नदी के तटवर्तीय इलाके में अंडे देते हैं। लेकिन माफिया का इलाके में बड़े दखल से इन्हें नुकसान पहुंच रहा है।