अमेरिका के कैलिफोर्निया डेविस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा आनुवंशिक बदलाव (Genetic Change) खोजा है जो इंसानों में कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। सोचने वाली बात ये है कि यह बदलाव हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) को कमजोर करता है जिससे कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने का मौका मिल जाता है। यह खोज इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि यह हमें कैंसर के नए और ज्यादा प्रभावी इलाज खोजने में मदद कर सकती है।
क्या है ये खास अंतर जो हमें चिंपैंजी से अलग करता है?
आपने सही पढ़ा चिंपैंजी! शोधकर्ताओं ने पाया कि हमारी कुछ प्रतिरक्षा कोशिकाएं जो आमतौर पर सॉलिड ट्यूमर (गांठ वाले कैंसर) से लड़ती हैं उतनी असरदार नहीं होतीं जितनी कि चिंपैंजी जैसे अन्य प्राइमेट्स की होती हैं। यह खुलासा “नेचर कम्युनिकेशंस” पत्रिका में प्रकाशित एक रिसर्च में हुआ है। दरअसल इंसानों और बंदरों जैसे जानवरों के बीच एक छोटा सा जेनेटिक अंतर होता है। यह अंतर फास लिगैंड (FAS-L) नामक एक खास प्रतिरक्षा प्रोटीन में पाया जाता है। यह प्रोटीन हमारे शरीर की रक्षा करने वाली कोशिकाओं में होता है और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। लेकिन इंसानों में इस प्रोटीन में एक छोटा सा बदलाव हो गया है, जिसकी वजह से हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाएं कैंसर के खिलाफ कम प्रभावी हो जाती हैं।
कमजोरी की जड़: प्लास्मिन एंजाइम और एक अमीनो एसिड का खेल
इस जेनेटिक बदलाव के पीछे एक एंजाइम का हाथ है जिसका नाम है प्लास्मिन। यह एंजाइम “एफएएस-एल” प्रोटीन को नुकसान पहुंचाता है, जिससे वह कमज़ोर पड़ जाता है और अपना काम ठीक से नहीं कर पाता। मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जोगेंद्र तुशीर सिंह बताते हैं कि “एफएएस-एल” प्रोटीन का यह बदलाव इंसानों के दिमाग की सोचने-समझने की शक्ति को तो बढ़ाता है, लेकिन कैंसर के मामले में यह हानिकारक साबित हुआ है। यह बदलाव कुछ ट्यूमर को हमारी रक्षा प्रणाली को कमजोर करने की अनुमति देता है जिससे हमारे शरीर की बीमारी से लड़ने की ताकत कम हो जाती है। यूसी डेविस टीम ने गहराई से अध्ययन किया और पाया कि इंसानों के जीन में “एफएएस-एल” प्रोटीन के एक छोटे से हिस्से पर एक खास बदलाव हुआ है। इसमें प्रोटीन में एक अमीनो एसिड प्रोलाइन (Proline) की जगह सेरीन (Serine) आ गया है। यह दिखने में भले ही छोटा बदलाव लगे, लेकिन इसी की वजह से “एफएएस-एल” प्रोटीन प्लास्मिन नामक एंजाइम से ज्यादा आसानी से कट जाता है और काम करना बंद कर देता है। परिणामस्वरूप, “एफएएस-एल” कमजोर हो जाता है और हमारा इम्यून सिस्टम कैंसर से ठीक से लड़ नहीं पाता।
यहां यह समझना जरूरी है कि प्लास्मिन एक खास तरह का प्रोटीज एंजाइम (Protease Enzyme) होता है, जो अक्सर ट्यूमर की मदद करता है और कैंसर को ज्यादा खतरनाक बना सकता है।
हमें प्राइमेट्स से सीखने की जरूरत
तुशीर-सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि चिंपैंजी और दूसरे प्राइमेट्स की तुलना में इंसानों में कैंसर की दर काफी ज्यादा है। उन्होंने कहा, बहुत कुछ ऐसा है जो हम नहीं जानते और अभी भी प्राइमेट्स से सीख सकते हैं और इंसानी कैंसर इम्यूनोथेरेपी को बेहतर बनाने के लिए इसे लागू कर सकते हैं। यह खोज वैज्ञानिकों को कैंसर के इलाज के लिए नई रणनीतियाँ विकसित करने में मदद कर सकती है। अब शोधकर्ता इस जेनेटिक बदलाव को ठीक करने या “एफएएस-एल” प्रोटीन को प्लास्मिन एंजाइम से बचाने के तरीकों पर काम कर सकते हैं। भविष्य में यह खोज कैंसर के खिलाफ लड़ाई में एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है, जिससे लाखों लोगों की जान बचाई जा सकेगी।