जोधपुर जिले के सिणली निवासी एवं हुब्बल्ली प्रवासी तेजाराम चौधरी मालवी ने कहा, जोधपुर की बोली की सबसे खास बात इसकी मिठास और अपनापन है। इसमें जोधपुर वालों का सौम्य व्यवहार, आदरभाव और आत्मीयता झलकती है। बात करने का ढंग बहुत सम्मानजनक होता है। पधारो सा, बिराजो सा सरीखे संबोधन अपनेपन का अहसास कराते हैं। इस बोली में भावनाएं बहुत सहजता से प्रकट होती हैं। दुख-सुख, प्रेम, तकरार सब कुछ बड़ी सरलता और सजीवता से कहा जाता है। मारवाड़ी बोली केवल भाषा नहीं है, यह मरुधरा की संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली को भी दर्शाती है। लोक गीत, कहावतें और पहेलियां सब इसी बोली में होते हैं, जो सामाजिक जीवन से गहराई से जुड़ी होती हैं। पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह दूरदर्शी शासक थे, जिन्होंने जोधपुर को एक समृद्ध, संगठित और आधुनिक रियासत के रूप में विकसित किया। उनके कार्य आज भी जोधपुर की पहचान और विरासत का हिस्सा हैं। पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह का जोधपुर के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे जोधपुर रियासत के शासक रहे और उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक तथा बुनियादी ढांचे के विकास की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए। पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह ने उम्मेद भवन पैलेस का निर्माण कराया, जो न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि उस समय के दौरान बेरोजगारी दूर करने का भी एक माध्यम बना। इस परियोजना के तहत हजारों लोगों को रोजगार मिला। उन्होंने जोधपुर शहर में योजनाबद्ध विकास कराया। सड़कों, भवनों और अन्य आधारभूत ढांचे के निर्माण में रुचि ली। उनके शासनकाल में कई आधुनिक संस्थान और इमारतें बनीं। पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बल दिया। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करवाई। साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए अस्पतालों की स्थापना भी की।
जोधपुर जिले के चाली निवासी एवं हुब्बल्ली प्रवासी करणाराम चौधरी तरक ने कहा, जोधपुर का चौपासनी स्कूल शिक्षा क्षेत्र में राजस्थान के सबसे पुरानी स्कूलों में से एक है। ऐसी की कई शिक्षण संस्थाएं जोधपुर में स्थापित हुई। राजस्थान जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्र में जल प्रबंधन अत्यंत आवश्यक था। पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह ने जल संरक्षण के लिए कई बांध और तालाब बनवाए, जिससे सिंचाई और पीने के पानी की समस्या को काफी हद तक सुलझाया गया। मारवाड़ी संगीत और लोकनृत्य भी काफी प्रसिद्ध हैं। जसवंत थड़ा सफेद संगमरमर से बना स्मारक है, जो मेहरानगढ़ किले के पास स्थित है। जोधपुरी सूट, बंदगला, राजस्थानी जूती, कशीदाकारी वस्त्र और लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
जोधपुर जिले के सिणली निवासी एवं हुब्बल्ली प्रवासी जालाराम चौधरी ने कहा, जोधपुर, जिसे “ब्लू सिटी” और “सन सिटी” के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शहर है। यह शहर अपनी समृद्ध विरासत, शानदार किलों, महलों और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। मेहरानगढ़ किला देश के सबसे बड़े किलों में से एक है। 400 फीट ऊंची चट्टान पर स्थित यह किला बहुत ही भव्य और ऐतिहासिक है। यहां से पूरे जोधपुर शहर का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। उम्मेद भवन पैलेस एक आलीशान महल है जो अब एक होटल, म्यूजियम और शाही निवास है। इसका एक हिस्सा लग्जरी होटल है। जोधपुर की पुरानी बस्तियों में घरों को नीले रंग से रंगा गया है, जो इसे “ब्लू सिटी” बनाता है। घंटाघर और सरदार मार्केट प्रसिद्ध बाजार है जहां हस्तशिल्प, मसाले, कपड़े, चूडिय़ां और अन्य पारंपरिक वस्तुएं खरीद सकते हैं। दाल बाटी चूरमा, मिर्ची बड़ा, घेवर, कचौरी, केर-सांगरी और गट्टे की सब्जी यहां के प्रमुख व्यंजन हैं।
जोधपुर जिले के धवा निवासी एवं हुब्बल्ली प्रवासी जोगाराम पटेल ने कहा, जोधपुर आज एक आधुनिक और तेजी से विकसित होता शहर बन चुका है। यहां ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक विकास का अनूठा संगम देखने को मिलता है। आईआईटी जोधपुर, एनएलयू, एनआईएफटी और आयुर्वेद विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना से शहर के बाहरी क्षेत्रों में विकास हुआ है, जिससे इन क्षेत्रों में भूमि की कीमतों में वृद्धि हुई है। आवासीय और वाणिज्यिक परियोजनाओं की बढ़ती मांग के कारण रिटेल हब का विकास हो रहा है।