राजस्थान हमारी जन्मभूमि है तथा कर्नाटक हमारी कर्मभूमि। राजस्थानी दोनों प्रदेशों के बीच तालमेल बिठाते हुए बिजनस को आगे बढ़ा रहे हैं। बिजनस के लिहाज से यहां का शांत माहौल भी उनके लिए काफी मददगार बन रहा है। शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान के लिए राजस्थानी लगातार आगे रहते हैं। राजस्थान के लोगों के बारे में ऐसा भी अक्सर कहा जाता है कि राजस्थान के लोग जहां भी जाते हैं वे वहां के स्थानीय लोगों के सात मिश्री की तरह घुल-मिल जाते हैं। यह गुण राजस्थानियों में कूट-कूट कर भरा है। यहां सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं और एक-दूसरे के त्योहारों को साथ-साथ मनाते हैं।
कर्नाटक में भी राजस्थान मूल के लोगों के कई संगठन बने हुए हैं। समाज स्तर पर भी कई संगठन है। ऐसे में इन संगठनों के माध्यम से कला व संस्कृति को आगे ले जाने की दिशा में किए जा रहे प्रयास सराहनीय है। हालांकि नई पीढ़ी मारवाड़ी या राजस्थानी भाषा को भूल रही है। ऐसे में नई पौध को इससे जोडऩे के प्रयास किए जाने की जरूरत है। बात यदि पहनावे की की जाएं तो राजस्थानी लोगों का एक अलग पहनावा रहा है। हालांकि यह अलग बात है कि पाश्चात्य सभ्यता के चलते हमारा परम्परागत पहनावा पीछे छूटता जा रहा है। अब केवल शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार या अवसर विशेष तक सीमित रह गया।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ हुब्बल्ली के अध्यक्ष उकचन्द बाफना मोकलसर कहते हैं, राजस्थान की मेहमाननवाजी और अपणायत का हर कोई कायल है। हर विपदा के समय राजस्थान के लोग सदैव अग्रिम पंक्ति में नजर आते हैं। सर्वधर्म समभाव की मिसाल राजस्थान में देखने को मिलती है। राजस्थान का अपना अलग इतिहास रहा है। राजस्थान के विकास में प्रवासियों का योगदान सराहनीय रहा है। वे अपनी जड़ों से भी जुड़े हुए हैं। अपनी परम्परा एवं रीति-रिवातों को बनाए रखने की दिशा में भी लगातार प्रयासरत है। राजस्थान में स्कूल, अस्पताल एवं अन्य स्थलों केे निर्माण में भी प्रवासियों ने सदैव योगदान दिया है। गौशालाओं में भी प्रवासी समय-समय पर सहयोग देते रहे हैं। राजस्थान के समदड़ी में बने ज्येष्ठ धाम में भी प्रवासियों का सहयोग रहा है। ऐसे में प्रवासी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। कई शादी-ब्याह भी अब राजस्थान में होने लगे हैं। इस तरह राजस्थान से जुड़ाव गहरा हो रहा है।