उन्होंने कहा कि पशु बचेगा तो पर्यावरण बचेगा। हमें समाज में परिवर्तन लाने की दरकार है। राजस्थान के विश्नोई का उदाहरण देते हुए संत ने कहा कि विश्नोई समाज ने खेजड़ी के पेड़ की रक्षा के खातिर अपने प्राणों की बलि दे दी और विश्नोई समाज के 363 लोग केवल पेड़ों के बचाने के लिए शहीद हो गए। ऐसा उदाहरण समूचे विश्व में कहींं नहीं मिलता। संत ने कहा, हम जहां भी मंदिर बनाएं वहां गौशाला भी हो। यह दूध पक्षालन में काम आ सकेगा। श्रावक-श्राविकाओं से आह्वान किया कि रोज केवल दस रुपए गोदान के लिए जरूर दें। केवल कानून बना देने से गाय नहीं बचेगी। इसके लिए सभी को सामूहिक प्रयास करना होगा।
राष्ट्र संत ने कहा, पिछले दिनों दस हजार लोगों ने धर्म परिवर्तन किया। हिन्दू का दुश्मन ही हिन्दू है। भगवान महावीर ने छूआछूत के खिलाफ क्रांति लड़ी। राष्ट्र संत ने कहा कि हमें धर्म को जानने की जरूरत है। धर्म दूध हैं तो साधना मिसरी है। यदि आप धार्मिक हैं तो मिसरी का स्वाद आ जाता है। संत ने कहा, हमने न कर्म समझा और न ही धर्म समझा। हमने छोटी-छोटी बातों में अपने आप को खत्म कर दिया। हम भटक गए। हमने छोटी-छोटी बातों मेंं धर्म को उलझा दिया। संत ने कहा कि हम स्वास्थ्य के साथ पुण्य एवं पाप को जोड़ें। किसी को बचाने की भावना से उठाया गया कठोर से कठोर कदम भी पुण्य है। उन्होंने कहा कि संत बनना सरल हैं लेकिन सैनिक बनना कठिन है। सैनिक भी संत से बड़े हैं। अहिंसा का मतलब बुझदिल या कायर नहीं है।
इस अवसर पर घनश्याममुनि, कौशलमुनि, अक्षतमुनि, सक्षममुनि, अभिनंदन मुनि के साथ ही मुनि चारित्रयश विजय एवं मुनि दक्षविजय का भी सान्निध्य रहा। इस अवसर पर श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष उकचंद बाफना, कार्याध्यक्ष गौतम भूरट, उपाध्यक्ष शांतिलाल खींवेसरा, सहमंत्री महेंद्र विनायकिया, कोषाध्यक्ष कांतिलाल बोहरा, पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र सिंघी, वरिष्ठ श्रावक कुंदनमल साकरिया, पूर्व अध्यक्ष हीराचंद तातेड़, पूर्व उपाध्यक्ष जवेरीलाल विनायकिया समेत अन्य श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे। रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी अजय जैन भी मौजूद थे।