केस 1
7 साल की बच्ची को रील देखने की आदत लगी। माता-पिता ने मनोचिकित्सक को दिखाया। वहां से फिजियोथेरेपी विभाग भेजा गया। 4 माह में रील की आदत छूटने के साथ ही मानसिक स्थिति बदली है। अब स्कूल आने-जाने की दिनचर्या सहित उग्र स्वभाव में भी कमी आ चुकी है। थेरेपी से यह संभव हो पाया है।
केस 2
9 साल की एक बालिका को मोबाइल एडिक्शन के कारण परिजन लेकर पहुंचे। बच्ची में एकाग्रता की कमी थी। वह 30 सेकंड भी एक चीज पर ध्यान नहीं दे पा रही थी। 6 माह उपचार के बाद अब वह खुद से कई चीज याद करने लगी है व गणितीय समझ भी बढ़ी है। वह वर्ष, माह व तारीख आदि की गणना भी कर रही है। लगातार सुधार हो रहा है।
केस 3
4 वर्षीय बालक को कार्टून कैरेक्टर की नकल करने की आदत हो गई। उनकी आवाज में बात करने लगा। खुद को भी वैसा समझने लगा। माता-पिता डॉक्टर के पास पहुंचे तो थेरेपी के लिए भेजा गया। 3 माह की थेरेपी के बाद वह समझ गया कि वह और कार्टून कैरेक्टर अलग-अलग हैं। पढ़ाई के साथ सामान्य व्यवहार करने लगा है।
रिकवरी इस तरह
ऑक्युपेशनल थेरेपी विभाग के प्रभारी डॉ. मनीष गोयल के अनुसार कोरोना काल के बाद से रील, मोबाइल एडिक्शन, गे्स एडिक्शन वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है। अब हर रोज लगभग 70 बच्चे उपचार के लिए पहुंच रहे हैं। विभाग में थेरेपी और फिजियोथेरेपी के छात्र इलाज उपलब्ध करा रहे हैं। इसमें शारीरिक और मानसिक गतिविधियां शामिल हैं।
ऑटिज्म के कई प्रकार होते हैं
ऑटिज्म के कई प्रकार होते हैं। कई बच्चे जन्मजात बीमारियों से मानसिक संतुलन नहीं बना पाते। ऐसे बच्चे लगभग 2 साल में दैनिक कार्य करने की स्थिति में पहुंच रहे हैं। मोबाइल एडिक्शन वाले बच्चों की संख्या पहले से अधिक हो गई है। इनकी 100त्न रिकवरी हो रही है। थेरेपी और माता-पिता के ध्यान देने से यह संभव हो पा रहा है। -डॉ. गौतम सुरागे, प्रभारी ऑक्युपेशनल थेरेपी विभाग, एमवायएच