राज्य सरकार ने दाखिल की थी याचिका
दरअसल, शिक्षाकर्मी से शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में शामिल किए गए शिक्षकों को ग्रेच्युटी भुगतान संबंधी ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने रिट याचिका दायर की थी। राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि यह एमपी सिविल सेवा नियम के तहत ग्रेच्युटी के पात्र नहीं हैं। नियम के तहत परिभाषित कर्मचारी की श्रेणी में भी नहीं हैं। इसके लिए पांच साल की सेवा की शर्त का उल्लेख किया। मामला सेवानिवृत्त शिक्षक शिवनाथ सिंह से जुडा हुआ था, जो शिक्षा विभाग में आमेलन से पांच साल की अवधि की सेवा से पहले ही सेवानिवृत्त हो गए थे। यह भी पढ़े –
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सरकार के तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस विवेक जैन ने फैसले में कहा कि कर्मचारी की परिभाषा से बहिष्करण केवल तभी लागू होता है, जब कोई व्यक्ति ग्रेच्युटी प्रदान करने वाले अन्य नियमों द्वारा शासित होता है। चूंकि पंचायत सेवा गैर-पेंशन योग्य थी और शिवनाथ सिंह किसी अन्य नियम के अंतर्गत नहीं आते थे, इसलिए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह बहिष्करण लागू नहीं होगा। न्यायालय ने माना कि उन्हें 1976 के नियमों के नियम 44 के आधार पर ग्रेच्युटी से वंचित नहीं किया जा सकता, जिसमें पांच वर्ष की सेवा अनिवार्य है।