न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायाधीश मनमोहन की खंडपीठ ने इस मामले पर राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई की। अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने कोर्ट से कहा कि यह जनता के धन के दुरुपयोग का मामला है। वर्तमान सरकार ने गंभीर सामग्री के आधार पर पिछली सरकार के मुकदमा नहीं चलाने के मत पर असहमति जाहिर की। राज्य सरकार ने मुकदमा जारी रखने की आवश्यकता जताई है, जिससे दोषियों पर कार्रवाई हो सके।
ये है मामला
साल 2008 से 2013 के बीच विज्ञापन कार्य का करीब 90 प्रतिशत क्रेयॉन्स एडवरटाइजिंग को दिया गया था। इस मामले में 2017 में निजी व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। 2019 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई। इसमें कुछ सरकारी अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों को जांच से बाहर रखा गया। फिर भी पहले दाखिल चार्जशीट और पूरक चार्जशीट को अंतिम चार्जशीट माना गया। 10 दिसंबर 2021 को राज्य सरकार ने एक आदेश पारित कर चारों एफआईआर के संबंध में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन समाप्ति के लिए आवेदन दायर करने का निर्णय लिया था। साल 2024 में सरकार बदलने के बाद भाजपा सरकार ने पुनर्विचार याचिकाओं को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की। हालाँकि, राजस्थान उच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया और राज्य सरकार पर प्रति याचिका 1 लाख का जुर्माना लगा दिया था। ऐसे में अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।