राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में जमीन खरीद-फरोख्त के लिए लाखों-करोड़ों के कैश ट्रांजेक्शन पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कैसे हो रहा है। इस तरह के मामलों को लेकर प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों से जवाब मांगा। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या अपंजीकृत और कम स्टांप ड्यूटी वाले दस्तावेजों के आधार पर एफआइआर दर्ज की जा सकती है।
न्यायाधीश समीर जैन ने शंकर खंडेलवाल की आपराधिक याचिका पर यह आदेश दिया। कोर्ट ने मामले में अनुसंधान जारी रखने की अनुमति दी। वहीं याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि इस तरह का कैश ट्रांजेक्शन प्रदेश में कालेधन को बढ़ावा देता है। कानूनन 20 हजार से ज्यादा का कैश ट्रांजेक्शन नहीं हो सकता। केवल विशेष परिस्थितियों में ही डिक्लेरेशन के साथ 2 लाख रुपए के कैश ट्रांजेक्शन की अनुमति है। इसके बावजूद जमीन-लैट के खरीद-बेचान में लाखों-करोड़ों का कैश ट्रांजेक्शन होता है। ऐसे मामलों में पुलिस स्टांप पर लिखे समझौते के आधार पर मामला दर्ज कर जांच भी शुरू कर देती है।
कोर्ट ने उठाया सवाल
कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह के सिविल नेचर के मामलों में पुलिस को एफआइआर दर्ज करने का अधिकार है और क्या पुलिस की आयकर व ईडी को सूचना देने की जिमेदारी नहीं बनती। इस तरह के मामलों में अपंजीकृत एग्रीमेंट से करोड़ों की डील होने से सरकार को राजस्व का नुकसान होने का मुद्दा भी उठाया गया।
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