विधानसभा में नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने जवाब देते हुए कहा कि राजस्थान में महाराष्ट्र मॉडल लागू किया जाएगा। इसके तहत सरकार बसें खुद नहीं खरीदेगी, बल्कि निजी कंपनियों की EV (इलेक्ट्रिक) और CNG बसों को किराए पर लिया जाएगा।
कंडक्टर सरकार के होंगे- UDH मंत्री
UDH मंत्री खर्रा ने बताया कि कंपनियां बसों का संचालन करेंगी, जबकि कंडक्टर सरकार के होंगे। इन बसों का प्रति किलोमीटर के आधार पर कंपनियों को भुगतान किया जाएगा। क्योंकि इससे सरकार को रखरखाव और ड्राइवर की जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ेगी, जिससे लागत में बचत होगी। सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती- जूली
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सरकार खुद कोई कदम नहीं उठा रही, बल्कि पूरा सिस्टम निजी हाथों में देने जा रही है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि ऐसा करिए कि सरकार सिर्फ टिकट काटे और लोग प्राइवेट बसों में सफर करें।
मंत्री खर्रा ने जवाब में कहा कि सरकार का मकसद बेहतर सार्वजनिक परिवहन सेवा देना है, लेकिन इसके लिए निजी भागीदारी आवश्यक है। इससे परिवहन सेवाएं अधिक कुशल और सस्ती होंगी। सरकार रोजगार भी उत्पन्न करेगी और संसाधनों की बचत भी होगी।
जयपुर में बढ़ते जाम को लेकर चिंता
इस दौरान कालीचरण सराफ ने जयपुर में ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा की बढ़ती संख्या पर भी सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि जयपुर में 41913 ऑटो रिक्शा और करीब 45500 ई-रिक्शा के परमिट जारी किए जा चुके हैं। इससे ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या जयपुर में 2400 सरकारी बसें चलाने की कोई योजना है?
क्या सफल होगा महाराष्ट्र मॉडल?
अब देखना होगा कि महाराष्ट्र मॉडल राजस्थान में कितना सफल होता है और क्या यह यातायात की समस्याओं को दूर कर पाएगा। विपक्ष इस फैसले को निजीकरण का बड़ा कदम बता रहा है, जबकि सरकार इसे आर्थिक रूप से लाभदायक और व्यवहारिक नीति बता रही है। राजस्थान में इस नए परिवहन मॉडल के क्रियान्वयन पर सभी की नजरें टिकी हैं।