राणा सांगा का पूरा नाम ‘महाराणा संग्राम सिंह‘ था। राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ में हुआ था। वे मेवाड़ के शासक राणा रायमल के पुत्र थे। पिता की मौत के बाद राणा सांगा 1509 में मेवाड़ के शासक बने और 1528 तक मेवाड़ के शासक रहे।
अपने जीवन काल में लड़े अनेकानेक युद्ध
इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि सांगा सबसे छोटे भाई होते हुए भी मेवाड़ के महाराणा बने। भाइयों के साथ संघर्ष में बड़े भाई पृथ्वीराज द्वारा उनकी आंख फूटने का वर्णन है। राणा सांगा ने अपने जीवन काल में अनेकानेक युद्ध लड़े थे। मुगल शासक बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में राणा सांगा की बहादुरी के बारे में लिखा है कि 1527 ई. भरतपुर में खानवा में बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध हुआ।
84 घाव खाए थे
इतिहासकार बताते हैं कि राणा सांगा ऐसे बहादुर योद्धा थे, जिन्होंने एक भुजा, एक आंख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना धेर्य और पराक्रम नहीं खोया। जीवनभर के सभी लड़े युद्धों में सांगा ने कुल 84 घाव खाए थे, इसके बाद भी वे लड़ते रहे। राणा सांगा ने अनेकानेक युद्ध लड़े। वे युद्ध के मूर्तिमान रूप थे। मालवा,गुजरात, दिल्ली ओर स्वयं बाबर को भी परास्त करने वाले सांगा एक मात्र ऐसे शासक थे जिन्होंने उत्तर भारत के एक मात्र नेतृत्व कर्ता के रूप में उसे सदा सुरक्षित रखा।
इब्राहिम लोदी को 2 बार हराया
इतिहासकार चंद्रशेखर बताते हैं कि 1517 में बूंदी रियासत में खतोली और बाड़ी के युद्ध में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को शिकस्त दी । इसके बाद राणा सांगा ने सन 1518-19 में धौलपुर के बाड़ी में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया।
17 मार्च, 1527 को खानवा युद्ध
प्रो. चंद्रशेखर बताते हैं कि बयाना के युद्ध के पश्चात 17 मार्च, 1527 ई. में युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और वे बुरी तरह घायल हो गए। खानवा के युद्ध में तीन तीर एक साथ चेहरे पर लगे उनमें एक तीर आंख पर लगा इस घायल अवस्था में मेवाड़ के सामंत राणा सांगा को युद्ध क्षेत्र से बाहर ले आए l ठीक होने के बाद वे पुनः बाबर से युद्ध करने की जिद पर आ गए l यह जिद यह बताती है कि वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए कितने कटिबद्ध थे l उन्हें जब होश आया तो वे जिद करने लगे कि बाबर को शिकस्त दिए बिना वे चित्तौड़ नहीं जाएगें। फिर से अपने सभी सामंतों को रणभूमि में आ जुटने के लिए पत्र लिखे। जब साथियों ने देखा इस पराजय में मेवाड़ का सर्वनाश होगा तो असंतुष्ट सरदारों ने राणा सांगा को जहर दे दिया। जिससे 30 जनवरी, 1528 को इस योद्धा की मृत्यु हो गई।