हस्तशिल्प: हर टांके में एक कहानी
जैसलमेर के कारीगर आज भी परंपरागत बुनाई, गोटा-पट्टी और शीशा कढ़ाई की तकनीकों को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखे हुए हैं। इन शिल्पों में न केवल सौंदर्य है, बल्कि एक कहानी है—घर, समाज और आत्मसम्मान की।युवा दे रहे नए आयाम
नया दौर नई सोच लाया है, लेकिन परंपरा की डोर अब भी थामी हुई है। कॉलेज फेस्ट से लेकर सोशल मीडिया तक, जैसलमेर के पारंपरिक परिधान अब मॉडर्न फ्यूजन का हिस्सा बन चुके हैं। लड़कियां जहां घाघरे को क्रॉप टॉप के साथ पहनकर नया ट्रेंड बना रही हैं, वहीं लडक़े धोती-कुर्ते को जैकेट और जूतियों से स्टाइल कर रहे हैं।शिल्पकारों की नई उम्मीद
देश-दुनिया से आने वाले पर्यटकों में इन परिधानों और आभूषणों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इससे जहां स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिल रहा है, वहीं दस्तकारों को पहचान और रोजगार भी मिल रहा है।आधुनिक युग में भी प्रासंगिक
लोक संस्कृति विशेषज्ञ डॉ. चित्रा पुरोहित बताती है कि यह वेशभूषा जैसलमेर की जलवायु, परंपरा और सौंदर्यबोध का त्रिवेणी संगम है। यह आधुनिक युग में भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है, जो अद्भुत है।इसी तरह फैशन डिजाइनर दीपक बोथरा का कहना है कि पारंपरिक परिधानों को यदि आधुनिक कट्स और शेड्स में ढाला जाए, तो यह इंटरनेशनल रैम्प तक का सफर तय कर सकते हैं। जैसलमेर की वेशभूषा ब्रांड बनने की पूरी क्षमता रखती है।