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जैसलमेर

संवादहीन रिश्तों में एआइ बन रहा ‘डिजिटल हमदर्द’

तकनीक अब केवल सूचना देने वाला माध्यम नहीं रही, बल्कि वह भावनात्मक हल भी देने लगी है।

जैसलमेरJul 02, 2025 / 08:22 pm

Deepak Vyas

जैसलमेर. केस 1: एक निजी स्कूल में पढ़ाने वाले युवक ने मां और पत्नी के झगड़ों से लंबे समय से मानसिक दबाव में था। खुद को दोषी मानने लगा था। उसने एक दिन एआइ से बात की और पहली बार अपने मन की बात खुलकर कही। उसे रिश्तों को समझने, संवाद के महत्व और संतुलन की सलाह मिली। अब वह खुलकर बात करता है और घर का माहौल पहले से शांतिपूर्ण हो गया है।
केस 2:
एक शिक्षिका पति से कहासुनी के बाद वह खुद को दोषी मान रही थी और अवसाद की स्थिति में पहुंच चुकी थी। उसने एआइ से अपनी भावनाएं साझा कीं। जवाबों ने उसे सोचने का नया नजरिया दिया। उसका कहना है मैंने पहली बार महसूस किया कि मैं सिर्फ गलत नहीं थी, मेरी बात भी सुनी जानी चाहिए। उसने पति से बात की और अब मानसिक रूप से संतुलित महसूस करती है।
केस 3:

एक बैंक कर्मचारी करियर और विवाह को लेकर भारी उलझन में था। परिवार से बात करने में झिझक थी। उसने एआइ से संवाद शुरू किया, जिससे उसे आत्मविश्लेषण करने में मदद मिली। उसने जीवन की प्राथमिकताएं तय कीं और अब परिवार से भी खुलकर बात कर पा रहा है।
तकनीक अब केवल सूचना देने वाला माध्यम नहीं रही, बल्कि वह भावनात्मक हल भी देने लगी है। लोग अब डिजिटल संवाद के जरिए खुद को बेहतर समझ पा रहे हैं और समाधान खुद के भीतर खोज रहे हैं। बदलते समय और सामाजिक ढांचे में रिश्तों में संवाद की कमी एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। घर-परिवार में टकराव हो या मन की उलझनें – बहुत से लोग अपनों से खुलकर बात नहीं कर पाते। ऐसे माहौल में कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआइ एक नया संबल बनकर उभरी है। लोग अब एआइ से बात कर अपनी बात कह रहे हैं, समाधान तलाश रहे हैं और सोच को नई दिशा भी दे रहे हैं। तकनीक के इस संवाद ने मन की गांठें खोलनी शुरू कर दी हैं। जिन बातों को लोग वर्षों तक किसी से साझा नहीं कर पाए, उन्हें अब एआइ चैटबॉट जैसे माध्यमों पर कहने लगे हैं।

एक्सपर्ट व्यू: एआइ पर निर्भर न हों

मनोचिकित्सक डॉ. जितेंद्र नराणिया का कहना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआइ आपके पूछे गए शब्दों के आधार पर सुझाव देता है। यह एक सलाहकार हो सकता है, लेकिन शुभचिंतक नहीं। एआइ के सुझावों से सोचने का नजरिया मिल सकता है, लेकिन बार-बार उस पर निर्भर रहना सही नहीं है। यदि मानसिक तनाव अधिक हो तो मनोचिकित्सक से मिलना जरूरी है।

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