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कोलकाता

ग्रामीण बंगाल के प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा का स्तर बदहाल

पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल की शिक्षा का स्तर सतह पर पहुंच गया है। स्थिति ऐसी है कि तीसरी और चौथी कक्षा के छात्र-छात्राओं के एक वर्ग को अपनी मातृ भाषा और संख्या का ज्ञान नहीं है। इसका खुलासा एक गैर सरकारी संगठन की ओर से जारी सर्वे रिपोर्ट में हुआ है।

कोलकाताFeb 08, 2025 / 04:27 pm

Rabindra Rai

ग्रामीण बंगाल के प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा का स्तर बदहाल

ग्रामीण बंगाल के प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा का स्तर बदहाल

तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों को अक्षर और संख्या पहचानने का ज्ञान नहीं

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, रूरल (एएसईआर) के अनुसार राज्य की चौथी कक्षा के 5.2 प्रतिशत विद्यार्थियों को बांग्ला भाषा के अक्षर का ज्ञान तक नहीं है। इस कक्षा के 16.4 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे हैं, जो अक्षर तो पढ़ सकते हैं लेकिन, शब्द नहीं पढ़ सकते। ऐसे छात्रों को गणित के ज्ञान की स्थिति भी बहुत ही निराशाजनक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तीसरी कक्षा के 4.4 प्रतिशत छात्र-छात्राएं ऐसे हैं, जो एक से नौ तक की संख्या को नहीं पहचान पा रहे हैं। बंगाल में प्रथम श्रेणी के ऐसे छात्र-छात्राओं की संख्या 14.3 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल पर ही निर्भर हैं। इस मामले में ग्रामीण क्षेत्रों में निजी स्कूल सरकारी स्कूलों से बहुत पीछे हैं।

गणित ज्ञान के मामले में विद्यार्थियों की स्थिति खराब

रिपोर्ट के अनुसार 2022 में सरकारी स्कूलों की तीसरी कक्षा के केवल 32.6 प्रतिशत छात्र-छात्राएं दूसरी कक्षा के पाठ्यपुस्तक पढ़ पा रहे थे। तीसरी कक्षा के बाकी 68 प्रतिशत बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम पढ़ नहीं पा रहे थे। 2024 में देखा गया कि तीसरी कक्षा के 34 प्रतिशत विद्यार्थी दूसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक के कुछ अंश ही पढ़ पा रहे हैं। 2022 में तीसरी कक्षा के केवल 32.4 प्रतिशत छात्र ही जोड़-घटाव कर पा रहे थे। 2024 में ऐसे छात्र-छात्राओं का यह आंकड़ा 37.5 फीसदी हो गया। गणित ज्ञान के मामले में पांचवीं और आठवीं के विद्यार्थियों की स्थिति बहुत खराब है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पांचवीं कक्षा के केवल 34.3 प्रतिशत और आठवीं कक्षा के 33.5 प्रतिशत छात्र-छात्राएं ही गुणा-भाग कर पाते थे।

तस्वीर आशाजनक नहीं

यह सर्वे वर्ष 2022 में शुरू किया और इसमें देश के ग्रामीण क्षेत्र में 19 भाषाओं के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल के छात्र-छात्राओं को शामिल किया गया, जिनकी आयु पांच से 16 वर्ष की है। इस सर्वे में सरकारी और निजी, दोनों स्कूलों के छात्रों को शामिल किया गया। सर्वे में शिक्षा की गुणवत्ता से लेकर स्कूल के बुनियादी ढांचा और उनमें उपलब्ध सुविधाएं सामने आई हैं। कुछ शिक्षकों का तर्क है कि 2022 में सर्वेक्षण से पहले कोरोना काल के कारण स्कूल बंद थे। इस कारण शिक्षा की गुणवत्ता गिर गई थी लेकिन, स्कूल खुले हुए दो साल हो जाने के बाद भी तस्वीर आशाजनक नहीं है। हालांकि, शिक्षकों के एक वर्ग के अनुसार, कोरोना काल के बाद से शिक्षा की गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे में कुछ सुधार हुआ है, जो इस सर्वेक्षण में भी दिखाई देता है।

34 प्रतिशत स्कूलों में उपयोग योग्य शौचालय नहीं

रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्याह्न भोजन की स्थिति अच्छी है। 84.9 प्रतिशत विद्यार्थियों को यह भोजन मिल रहा है, 75.5 प्रतिशत स्कूलों में पीने योग्य पानी है और 82.3 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय हैं लेकिन, 19.5 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं। 5.4 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय तो हैं लेकिन उनमें ताले लगे हैं। सिर्फ 66.2 प्रतिशत स्कूलों में ही उपयोग योग्य लड़कियों के अलग शौचालय हैं।

विद्यार्थियों के दाखिले में सरकारी स्कूल आगे

रिपोर्ट के अनुसार छात्र-छात्राओं के दाखिले के मामले में देश के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल काफी आगे हैं। छह से 14 वर्ष तक के 89.6 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है, जबकि 8.7 प्रतिशत बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया। कक्षा एक से पांच तक छात्र-छात्राओं की नामांकन दर में बंगाल अन्य राज्यों से काफी आगे है। 2018 में, कक्षा एक से पांच तक लडक़ों की नामांकन दर 87.4 प्रतिशत थी। 2022 में यह बढक़र 91.7 फीसदी हो गई। हालांकि, 2024 में यह फिर से घटकर 86.4 फीसदी हो गई है। वर्ष 2018 में एक से पांच कक्षा में लड़कियों की नामांकन दर 88.7 प्रतिशत थी। 2022 में यह बढक़र 93.1 प्रतिशत हो गई लेकिन, 2024 में यह आंकड़ा घटकर 89.4 प्रतिशत पर आ गया।

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