इस दौरान सपा के कई क्षत्रिय नेता मौजूद रहे। उदयवीर सिंह और अरविंद सिंह गोप की पहल पर अखिलेश को पारंपरिक मेवाड़ी साफा बांधा गया। यह पहला मौका था जब अखिलेश पूरी तरह राजपूत परंपरा में नजर आए।
अखिलेश ने कही यह अह अहम बातें
1. ‘महापुरुषों को राजनीति में लाना गलत’ अखिलेश ने दो टूक कहा कि ‘महापुरुष किसी एक पार्टी के नहीं होते। भाजपा सोचती है महाराणा प्रताप उनके हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। वह सबके हैं।’ उन्होंने साफ किया कि किसी भी महापुरुष की विरासत पर सियासी ठप्पा लगाना ठीक नहीं। 2. ‘अफवाहों से बचें, देश की सेना पर भरोसा करें’ भारत-पाक तनाव पर बोले- ‘हमारी सेना पर हमें गर्व है। देश को इस समय अफवाहों और झूठ से नहीं, समझदारी से काम लेना चाहिए।’
3. ‘भाजपा के पास नहीं है रोजगार का एजेंडा’ अखिलेश ने मेले बंद कराने को रोजगार विरोधी कदम बताते हुए कहा- ‘भाजपा कारोबार और सांस्कृतिक मेलों को खत्म कर रही है। यह जनता को गुमराह करने की रणनीति है।’
बड़ा सियासी संदेश देने के लिए पहना राजपूताना साफा
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, यूपी में राजपूत समुदाय की आबादी करीब 8 से 10% है। प्रदेश की 100 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनका सीधा असर है। ऐसे में राणा सांगा विवाद के बाद अखिलेश का साफा पहनना केवल परंपरा निभाना नहीं, बल्कि सियासी डैमेज कंट्रोल भी है।
जानें कौन थे राणा सांगा
राणा सांगा, महाराणा प्रताप के परदादा थे। उन्होंने 1527 में बाबर के खिलाफ खानवा का युद्ध लड़ा था। महाराणा प्रताप ने 1576 में अकबर से हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा। हाल ही में सपा सांसद रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया था, जिससे ठाकुर समाज में नाराज़गी फैल गई थी। क्या बोले थे रामजीलाल सुमन?
‘अगर मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो हिंदू गद्दार राणा सांगा की औलाद हैं, जिसने बाबर को भारत बुलाया। बाबर को तो गाली देते हो, राणा सांगा को क्यों नहीं?’ सुमन के इस बयान से उठे सियासी तूफान को थामने के लिए अब अखिलेश यादव ने महाराणा प्रताप की जयंती को मंच बनाकर राजपूतों को संदेश देने की कोशिश की है।