Nagaur patrika…शहरवासियों के लिए विशेष आकर्षण केन्द्र रही है पांच सौ बरस से पुष्करणा समाज की होली
नागौर. पुष्करणा समाज की होली सदैव शहरवासियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रही है। इसका इतिहास करीब साढ़े तीन सौ बरस पुराना बताया जाता है। अब लोग जहां सामान्यत: होली विभिन्न प्रकार के खतरनाक केमिकलयुक्त रंगों का प्रयोग होली मेें करते हैं, लेकिन पुष्करणा समाज की होली से इससे काफी हटकर केवल प्राकृतिक रंगों […]
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नागौर. पुष्करणा समाज की होली सदैव शहरवासियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रही है। इसका इतिहास करीब साढ़े तीन सौ बरस पुराना बताया जाता है। अब लोग जहां सामान्यत: होली विभिन्न प्रकार के खतरनाक केमिकलयुक्त रंगों का प्रयोग होली मेें करते हैं, लेकिन पुष्करणा समाज की होली से इससे काफी हटकर केवल प्राकृतिक रंगों के साथ होती है। इसमें समाज के लोग बढ़-चढकऱ हिस्सा लेते हैं। इसकी एक विशेषता यह भी है कि समाज की होली पूरी तरह से गायन व वादन के रंगों से परिपूर्ण होती है। पुष्करणा समाज के होली उत्सव की शुरुआत लोढ़ा चौक में गणपति, चौथ माता एवं हनुमान की प्रतिमा को टीका लगाने के साथ होती है। इसके बाद से कार्यक्रम लगातार चलते रहते हैं। धुलण्डी की होली एवं रंग पंचमी के दिन की होली विशेष तौर पर आकर्षण का केन्द्र होती है।
काल्पनिक विवाह के साथ होती है होली
धुलण्डी के दिन पुष्करणा समाज की रंग संग होली होती है। इसमें काल्पनिक विवाह आयोजन के साथ गायन किया जाता है। इसमें कार्यक्रम के अंत में होली की राख से खेली जाती है। समाज के लोग परस्पर एक-दूसरे पर इसकी बौछार करते हैं। इसमें राशायनिक रंगों एवं पानी का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित होता है। समाज के राज गायक रमेश व्यास बताते हैं कि लोगों ने समय के हिसाब से खुद को बदलने के साथ ही होली उत्सव का रंग ही बदल दिया, लेकिन पुष्करणा समाज की होली का रंग आज भी नहीं बदला। साढ़े तीन सौ बरस पहले वीर पंडित गिरधर व्यास के समय जिस तरह से होली खेलते थे। उसी तरह से आज भी यह समाज होली खेलता है। सारे कार्यक्रम भी बिलकुल उसी तरह से होते हैं। इनमें समय के साथ किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया है। व्यास बताते हैं कि इसमें प्राकृतिक रंगों से ही एक-दूसरे पर इसकी बौछार की जाती है।
डांडिया रास देखने उमड़ता है शहर
पुष्करणा समाज के विजय व्यास बताते हैं कि होलिका दहन के दिन पुष्करणा समाज की ओर से डांडिया रास का आयोजन होता है। इसको देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इसमें देर रात्रि तक रास के साथ गायन किया जाता है।
बंशीवाला के साथ खेलते हैं होली
समाज के घनश्याम लाल आचार्य बताते हैं कि रंग पंचमी पर बंशीवाला मंदिर के पुजारी की ओर से निमंत्रण देने की परंपरा भी बरसों पुरानी है। आज भी रंग पंचमी पर बंशीवाला पुजारी की ओर से निमंत्रण मिलने पर समाज के लोग मंदिर पहुंचते हैं। होरी के गायन के साथ ही प्राकृतिक रंगों की होली भी खेली जाती है।
नहीं बदली पुष्करणा समाज की होली
पुष्करणा समाज की होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। समाज की होली गायन, वादन एवं नृत्य के साथ ही रंगों के अनूठे मिश्रण का मिला-जुला रूप होती है।
पुखराज व्यास, राजा साहब, पुष्करणा समाज
परंपराओं को उसी स्वरूप में बनाए रखने का कार्य पुष्करणा समाज की ओर से बखूबी किया गया है। हमारे समाज की होली में आज भी राशायनिक रंगों का प्रयोग नहीं होता।
ओमप्रकाश मूथा, पुष्करणा समाज
पुष्करणा समाज की होली का इतिहास करीब साढ़े तीन सौ बरस पुराना है। पहले जैसे होली खेली जाती थी, समाज आज भी उसी रंग में ही होली खेलता है।
संजय कुमार व्यास, पुष्करणा समाज
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