गौरतलब है कि प्रदेश में आए दिन भ्रूण हत्या की घटनाएं सामने आती हैं, इसमें भी कन्या भू्रण हत्या की घटनाएं ज्यादा होती हैं। कन्या भ्रूण हत्या मानवता और विशेष रूप से समूची स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है। आज भी लोग मां के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। इसके साथ अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए भी लोग भ्रूण हत्या करते हैं। बालिका शिशु पर बालक शिशु की प्राथमिकता भी बड़ा कारण है।
जन्म देने वालों को नहीं चाहिए, तो पुलिस क्यों टेंशन ले नाम नहीं छापने की बात पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि जब जन्म देने वालों को ही बच्चा नहीं चाहिए तो पुलिस क्यों सिर दर्द मोल ले। दूसरी बड़ी वजह यह भी है कि ऐसे में मामलों में कोई भी पैरवी नहीं करता, इसलिए पुलिस जब एफआर लगाती है तो कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई जाती है।
झालावाड़ में सबसे ज्यादा चालान वर्ष 2019 से 2023 तक पांच साल में लगभग सभी जिलों में भ्रूण हत्या के 449 मामले दर्ज किए गए और ज्यादातर मामलों में पुलिस ने एफआर लगाकर फाइल बंद कर दी। पुलिस की ओर से भ्रूण हत्या करने वालों के बारे में जांच-पड़ताल नहीं करने के कारण ही इस प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं। भ्रूण हत्या के मामलों में चालान करने में सबसे आगे झालावाड़ जिले की पुलिस रही है। झालावाड़ जिले में पांच साल में कुल छह मामले दर्ज हुए और सभी में चालान पेश किया गया। हालांकि आरोपियों की पहचान नहीं हो पाई। इसके अलावा पुष्कर में एक, नागौर में एक, शाहपुरा में दो, जयपुर में दो, बीकानेर में तीन, हनुमानगढ़ में एक, करौली में एक, पाली में एक, बूंदी में दो व सलूम्बर में एक मामले में चालान पेश किया गया।
एक्सपर्ट कमेंट : गहन अनुसंधान की आवश्यकता भ्रूण हत्या के मामलों में गहन अनुसंधान की आवश्कता रहती है। यदि मामले की सही ढंग से जांच हो और डीएनए जांच करके आरोपियों का पता लगाया जाए तो प्रभावी कार्रवाई हो सकती है, लेकिन पुलिस ऐसे में मामलों गंभीरता नहीं दिखाती।
– सवाईसिंह चौधरी, सेवानिवृत्त आईपीएस अपराध गंभीर, समाज पर पड़ रहा असर भ्रूण हत्या का अपराध गंभीर है और इससे समाज में महिलाओं की संख्या घट रही है। ऐसे अपराध सामान्य तौर पर अस्पताल या क्लीनिक संचालकों की मिलीभगत से होते हैं। भ्रूण हत्या के मामलों में ज्यादातर एफआईआर सरकार की ओर से दर्ज करवाई जाती है, इसलिए जब पुलिस न्यायालय में एफआर पेश करती है तो सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर लोक अभियोजक को आपत्ति जतानी चाहिए, ताकि पुलिस पर सही जांच करने का दबाव बने, लेकिन ऐसा होता नहीं।
– के. राम बागडिय़ा, सेवानिवृत्त डीजीपी