क्या है मामला?
वकील मैथ्यूज नेदुम्परा ने 2022 में दायर एक रिट याचिका का उल्लेख किया, जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को पुनर्जनन की मांग की गई थी। नेदुम्परा ने कहा, “हम देख रहे हैं कि क्या हो रहा है? तत्कालीन सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़ से इस याचिका को पांच बार सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस देश के लोग एनजेएसी की मांग कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने भी इसका समर्थन किया है।” इस पर सीजेआइ खन्ना ने नाराजगी जताते हुए कहा, “यहां राजनीतिक बयानबाजी न करें।” उन्होंने याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री का रुख
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने इस याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। रजिस्ट्री का कहना था कि एनजेएसी से संबंधित मुद्दा 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में पहले ही सुलझाया जा चुका है। रजिस्ट्री ने याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका के जरिए 2015 के एनजेएसी फैसले की समीक्षा की मांग जैसा है, जो स्वीकार्य नहीं है। रजिस्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XV नियम 5 का हवाला दिया, जो तुच्छ या आधारहीन याचिकाओं को अस्वीकार करने की अनुमति देता है। यह भी पढ़ें:
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2014 में संसद द्वारा पारित और अधिकांश राज्यों द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक आयोग के गठन का प्रावधान था, जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के प्रतिनिधि शामिल होते। हालांकि, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में इस अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया। कोर्ट ने माना कि यह अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। तब से कॉलेजियम प्रणाली और न्यायिक नियुक्तियों में सुधार को लेकर समय-समय पर बहस छिड़ती रही है।
सीजेआइ खन्ना का रुख
सीजेआइ संजीव खन्ना ने नेदुम्परा के बयानों को अस्वीकार करते हुए अदालत की गरिमा बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालत संवैधानिक और कानूनी मसलों पर विचार करती है, न कि राजनीतिक मंच है। खन्ना, जो 11 नवंबर 2024 से भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश हैं, अपने कार्यकाल में न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता पर जोर दे रहे हैं।