बुधवार तक मेयर के बयान पर विवाद इतना बढ़ गया कि उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े। सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें “बांग्लादेशी” और “देशद्रोही” जैसे तीखे शब्दों से निशाना बनाया। आलोचना के इस तूफान के बीच अंजुम आरा ने माफी मांगते हुए कहा, “मुझे अपने पिछले बयान पर खेद है। सुबह से मुझे तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं मिली हैं—कुछ ने मुझे गद्दार कहा, कुछ ने विदेशी। मैं मीडिया से अनुरोध करती हूं कि मेरे बारे में गहराई से जांच करे। अगर कोई ठोस सबूत मिले, तो मेरे खिलाफ सख्त कार्रवाई का स्वागत है।” उनकी आवाज में अफसोस साफ झलक रहा था। “मेरा इरादा सिर्फ दरभंगा में शांति बनाए रखना था,” उन्होंने सफाई दी, “लेकिन अगर किसी की भावनाएं आहत हुईं, तो मैं इसके लिए माफी मांगती हूं।”
इस बीच, बिहार के मंत्री अशोक चौधरी ने मेयर के बयान की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, “ऐसे बयान सामाजिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। बिहार प्यार और भाईचारे से चलता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नारा है ‘पूरा बिहार मेरा परिवार’, जिसमें हर जाति और धर्म के लोग शामिल हैं। कुछ लोग सिर्फ सुर्खियों में रहने के लिए ऐसी बातें कहते हैं। मेरे ख्याल से ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल देना चाहिए।” चौधरी का गुस्सा इस बात का संकेत था कि बिहार की सियासत में एकता का कितना महत्व है।
दूसरी ओर, पटना में विधानसभा सत्र के दौरान एक अलग लेकिन गर्मागर्म घटना सामने आई। राजद के विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन पर बिहार की महिलाओं, खासकर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का अपमान करने का आरोप लगाते हुए वॉकआउट कर दिया। राबड़ी देवी ने तीखे शब्दों में कहा, “नीतीश कुमार भांग खाकर विधानसभा आते हैं और महिलाओं का अपमान करते हैं, जिसमें मैं भी शामिल हूं। उन्हें हमारे शासनकाल के काम देखने चाहिए। उनके आसपास के लोग जो कहते हैं, वही वह बोलते हैं। उनकी अपनी पार्टी और बीजेपी के कुछ नेता उन्हें ऐसी बातें कहने के लिए उकसाते हैं।” हालांकि यह मामला होली विवाद से अलग था, लेकिन इसने बिहार के सियासी माहौल की उथल-पुथल को और उजागर कर दिया।
मेयर अंजुम आरा का यह बयान, जो शांति की मंशा से शुरू हुआ, जल्द ही विवाद, माफी और राजनीतिक तकरार का सबब बन गया। दरभंगा में उनके इस यू-टर्न ने सवाल खड़े किए—क्या शांति का उनका सपना बेहतर शब्दों में पेश किया जा सकता था? क्या लोगों का गुस्सा जायज था या यह अतिरंजना थी? बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता के इस नाजुक दौर में यह घटना एक सबक बनकर उभरी कि शब्द कितने शक्तिशाली हो सकते हैं—वे जोड़ भी सकते हैं और तोड़ भी।