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सेना में फौजी घटा दिए, दो-दो सेक्टर की जिम्मेदारी एक बटालियन पर: रिटायर्ड मेजर जनरल ने कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर उठाए सवाल

मेजर जनरल बख्शी का कहना है कि सेना में 1.80 लाख पद खाली पड़े हैं, जिसका सीधा असर सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा पर पड़ रहा है।

भारतApr 24, 2025 / 09:00 am

Anish Shekhar

पहलगाम में हालिया आतंकी हमले ने एक बार फिर कश्मीर की नाजुक सुरक्षा व्यवस्था को कठघरे में ला खड़ा किया है। इस हमले ने न केवल आम नागरिकों और पर्यटकों के बीच दहशत फैलाई, बल्कि रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों की गहरी नाराजगी को भी उजागर किया। रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी और मेजर जनरल गौरव आर्य जैसे अनुभवी सैन्य विशेषज्ञों ने सरकार की नीतियों पर तीखे सवाल उठाए हैं। खासकर मेजर जनरल बख्शी ने सेना में जवानों की कमी और भर्ती प्रक्रिया में देरी को देश की सुरक्षा के लिए घातक बताया है।
मेजर जनरल बख्शी का कहना है कि सेना में 1.80 लाख पद खाली पड़े हैं, जिसका सीधा असर सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा पर पड़ रहा है। उन्होंने तल्ख शब्दों में पूछा, “कोरोना के समय भर्ती रोकी गई, लेकिन अब क्या बहाना है? हम पैसा बचा रहे हैं या देश को खतरे में डाल रहे हैं?” उनका यह सवाल न केवल सरकार की प्राथमिकताओं पर चोट करता है, बल्कि यह भी रेखांकित करता है कि पहाड़ों और जंगलों में आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सैन्य बल जरूरी है। बख्शी ने चेतावनी दी कि एक बटालियन पर दो-दो सेक्टरों की जिम्मेदारी डालना न सिर्फ अव्यवहारिक है, बल्कि जवानों की जान को भी जोखिम में डालता है।
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तत्काल भर्ती प्रक्रिया तेज करने की मांग की

पहलगाम जैसे पर्यटक स्थलों की सुरक्षा को लेकर उनकी चिंता और भी गहरी है। यह क्षेत्र न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां पर्यटकों की आवाजाही देश की छवि और अर्थव्यवस्था से भी जुड़ी है। बख्शी ने जोर देकर कहा कि आतंकी संगठन फिर से सक्रिय हो रहे हैं, और ऐसे में सेना की ताकत कम करना आत्मघाती कदम है। उन्होंने सरकार से तत्काल भर्ती प्रक्रिया तेज करने और खाली पदों को भरने की मांग की।
उनका यह बयान कि “अगर फौज में जवान ही नहीं होंगे, तो हम किससे लड़वाएंगे?” देश के सामने एक असहज सत्य रखता है। पहलगाम हमला एक चेतावनी है, जिसे नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। मेजर जनरल बख्शी का यह आह्वान कि “पैसा बचाने की नीति छोड़कर देश बचाने की सोचें” हर नागरिक और नीति-निर्माता को आत्ममंथन के लिए मजबूर करता है। क्या हम वाकई अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं, या सिर्फ अल्पकालिक बचत के पीछे भाग रहे हैं? यह सवाल आज हर भारतीय के सामने है।

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