क्यों हो रही हैं डायन के नाम पर हत्याएं?
बिहार और झारखंड में आज भी आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास और टोना-टोटका की धारणाएं गहरी जमी हुई हैं। जब किसी परिवार में बीमारी या अचानक मृत्यु होती है, तो इसका दोष गांव की महिलाओं पर डायन कहकर लगाया जाता है। ग्रामीण समाज में यह कुरीति आज भी जानलेवा बनी हुई है।बिहार में हर साल 4 महिलाओं की हत्या
बिहार में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 और 2021 में डायन के संदेह में चार-चार महिलाओं की हत्या हुई। इससे पहले भी, रोहतास, जमुई और गया जैसे जिलों में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जहां बीमारियों और मौतों के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराकर उनकी हत्या कर दी गई।झारखंड में हर तीसरे दिन एक हत्या
झारखंड में स्थिति और भी भयावह है। पिछले 20 सालों में 1800 से अधिक महिलाओं को डायन बताकर मारा गया। इसका मतलब है कि हर तीसरे दिन झारखंड में एक महिला अंधविश्वास की बलि चढ़ती है। 2015 से 2020 के बीच 4,556 मामले दर्ज हुए और 272 हत्याएं, जिनमें से 215 महिलाएं थीं।क्यों हो रही हैं इन घटनाओं की पुनरावृत्ति?
—अंधविश्वास और कुरीतियां।—अशिक्षा और जागरूकता की कमी।
—पुलिस-प्रशासन की ढिलाई।
—गांवों में सामाजिक दबाव और दबंगों का अत्याचार।
बिहार: देश का पहला राज्य जिसने कानून बनाया
बिहार देश का पहला राज्य है, जिसने डायन प्रथा और काला जादू पर रोक लगाने के लिए 1999 में कानून बनाया। इस कानून के तहत काला जादू, टोना-टोटका और डायन कहकर प्रताड़ित करने पर सजा का प्रावधान है।झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी कानून
झारखंड: कानून है लेकिन सख्ती से पालन नहीं होता।ओडिशा (2013): डायन शिकार और टोना-टोटका पर रोक लगाने वाला कानून, 1-3 साल की सजा का प्रावधान।
छत्तीसगढ़ (2015): टोनाही प्रताड़ना निवारण कानून, 5 साल तक की सजा।
महाराष्ट्र (2013): काला जादू, तंत्र-मंत्र पर रोक, 6 महीने से 7 साल तक की सजा और 50 हजार तक जुर्माना।
गुजरात: मानव बलि और काला जादू के खिलाफ 6 महीने से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है।