शोध में बताया गया कि ग्लेशियरों का भारी वजन पृथ्वी की सतह और इसके नीचे की मैग्मा परतों पर दबाव डालता है। यह दबाव ज्वालामुखी गतिविधियों को नियंत्रित रखता है। जब ग्लेशियर पिघलते हैं तो यह दबाव कम हो जाता है। इससे मैग्मा और गैसें फैलने लगती हैं। ज्वालामुखी के नीचे दबाव बढ़ता है, जो विस्फोटों का कारण बन सकता है। आइसलैंड में यह प्रक्रिया पहले देखी जा चुकी है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि हमें उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जहां ग्लेशियर और ज्वालामुखी एक साथ मौजूद हैं। अंटार्कटिका, रूस, न्यूजीलैंड और उत्तरी अमेरिका में ज्वालामुखी गतिविधियों की निगरानी बढ़ानी होगी। साथ ही, जलवायु परिवर्तन की रफ्तार घटाने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना जरूरी है, ताकि ग्लेशियरों का पिघलना भी धीमा हो।