पहले जानिए क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के अनुसार, महिला की आरोपी से मुलाकात ‘बाइक राइडर्स ग्रुप’ के जरिए हुई थी। जहां वह ग्रुप का एडमिन था। आरोपी ने खुद को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो में डिप्टी कमिश्नर (DCP) के पद पर कार्यरत बताया था और धीरे-धीरे महिला से नज़दीकियां बढ़ाईं। अभियोजन के अनुसार, उसने महिला को शादी का झांसा देकर कई बार जबरन यौन संबंध बनाए। जब महिला ने शादी के लिए दबाव बनाया तो आरोपी ने व्हाट्सएप पर कथित तौर पर तलाक की अर्जी की एक प्रति भेजी और जल्द ही अपनी पत्नी से अलग होकर विवाह करने का आश्वासन दिया।
आरोपी की दलीलें और कोर्ट की प्रतिक्रिया
महिला ने अपने आरोपों में यह भी कहा कि आरोपी ने उसकी निजी तस्वीरों को सार्वजनिक करने की धमकी दी। इस धमकी और धोखाधड़ी के बाद महिला ने पुलिस से संपर्क किया और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। आरोपी की ओर से दायर जमानत याचिका में कहा गया कि महिला बालिग है। उसकी उम्र 53 साल है और उसका एक वयस्क बेटा भी है। इसलिए उसे यह निर्णय लेने की समझ थी कि वह किसके साथ संबंध बना रही है। आरोपी ने यह भी दावा किया कि दोनों के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से बने थे और महिला को पहले से ही पता था कि वह शादीशुदा है।
कोर्ट में प्रस्तुत साक्ष्यों में आरोपी का तर्क झूठा
हालांकि, अदालत ने रिकॉर्ड में प्रस्तुत साक्ष्यों जैसे कि व्हाट्सएप चैट और तलाक के कागजात की जांच करते हुए पाया कि आरोपी ने तलाक की अर्जी में जालसाजी की थी और महिला को झूठे तथ्यों के आधार पर धोखे में रखा। न्यायालय ने कहा कि यह परिस्थितियां इस ओर संकेत करती हैं कि यौन संबंध के लिए दी गई सहमति न तो पूरी जानकारी पर आधारित थी और न ही यह स्वतंत्र थी, बल्कि यह धोखाधड़ी और फरेब पर आधारित थी।
अन्य भ्रामक दावे और साक्ष्य की गंभीरता
आरोपी ने अपनी पहचान को लेकर कई दावे किए थे। उसने खुद को भारतीय नौसेना का पूर्व कप्तान, एनएसजी का सदस्य और 2008 मुंबई हमले के दौरान ऑपरेशन का हिस्सा बताया था। इसके साथ ही, उसने यह भी दावा किया कि वह वर्तमान में डीसीपी, नारकोटिक्स के रूप में कार्यरत है। न्यायालय ने पाया कि ये सभी दावे झूठे प्रतीत होते हैं और आरोपी की मंशा को संदेह के घेरे में लाते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर 4 जुलाई को सुनवाई की गई थी।