उन्होंने कहा कि हम साहित्य के माध्यम से जब देश के आंतरिक स्वरूप को समझते हैं तो ऐक्य और साय का पता चलता है, जबकि बाहरी और ऊपरी तौर पर देखने से भेद नजर आते हैं। वस्तुत: देश में इस तरह के जितने भी विवाद हैं, वे पश्चिमी दृष्टिकोण की वजह से हैं। तमिलनाडु में त्रिभाषा नीति के विरोध पर उनका कहना था कि तीसरी भाषा कोई भी भाषा हो सकती है। आरएसएस बहुभाषी अवधारणा को मानता है। उसके प्रयासों से ही देशभर में भारतीय भाषा दिवस मनाने की शुरुआत हुई है। इसी कड़ी में आरएसएस की ओर से सर्व भाषा साहित्य सम्मान दिया जाता है।
अनुवाद साहित्य में व्यापक संभावनाएं
मनोज कुमार ने कहा कि भाषा जोड़ने का काम करती है। उस पर व्यावहारिक रूप से कार्य होना चाहिए। अनुवाद में काफी संभावनाएं हैं। उदाहरण के तौर पर तमिल साहित्य ही दो हजार साल से अधिक पुराना है। उनका मानना है कि अन्य भाषाओं में उपलब्ध अनुवाद मूलत: अंग्रेजी में अनूदित होने के बाद आते हैं जिससे रचना की मूल भावना मुखरित नहीं हो पाती। कोशिश की जाएगी कि तमिल साहित्य मूल भाषा से सीधे हिन्दी समेत अन्य भाषाओं में अनूदित हो। शिक्षण संस्थानों व साहित्यक अकादमियों की ओर से प्रयास किया जाएगा कि अनुवाद कार्य आजीविका का माध्यम भी बने।
पढ़ने की प्रवृत्ति कायम
सह संगठन मंत्री ने कहा कि लोगों की पढ़ने की प्रवृत्ति कम नहीं हुई है बल्कि माध्यम अवश्य बदलने लगा है। पाठक के धरातल पर उतरकर रोचक भाषा में लिख जाए तो पाठक अवश्य मिलेंगे। उपहार में पुष्प नहीं पुस्तक और बुके नहीं बुक के नेरेटिव्स पर भी फोकस किया जाना चाहिए। उन्होंने संघ के शताब्दी वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार विषयक कहानी स्पर्धा, संघ साहित्य पर परिचर्चा व आत्मबोध से विश्वबोध पर व्यायान के आयोजन की जानकारी दी।