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हर दिन खुद से प्रतिस्पर्धा करें, तभी बनेंगे स्वयं के बेहतर वर्जन

अमरीकी लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर डेरेन हार्डी कहते हैं कि हर दिन एक मौका है अपने पुराने स्वरूप से थोड़ा बेहतर बनने का। सुबह जिस इंसान को आपने आईने में देखा था, क्या रात को वही इंसान थोड़ा बेहतर सोच, बेहतर भावनाओं और बेहतर कार्यों के साथ उस आईने में देख रहा है? अगर हां, तो आप जीत रहे हैं। आपका मुकाबला सिर्फ ‘कल के आप’ से होना चाहिए।

जयपुरMay 02, 2025 / 01:25 pm

विकास माथुर

समाज में रहकर हम किसी के साथ अच्छी दोस्ती तो किसी के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं, क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं। लेकिन वह धीरे-धीरे दूसरों से तुलना करना शुरू कर देता है। दूसरों की जीवनयात्रा को देखकर खुद को कमतर मानने लगता है। इस तरह की तुलना हमारी पहचान का हिस्सा बन चुकी है। हम लगातार दूसरों की उपलब्धियों, उनके सम्मान, प्रशंसा और उनके जीवन के स्तर की तुलना अपने जीवन से करते हैं। डेरेन हार्डी कहते हैं कि यह स्वाभाविक है-लेकिन यही स्वाभाविक प्रवृत्ति अक्सर अस्वस्थ मानसिकता में बदल जाती है।
जब हम दूसरों से बेहतर बनने के बजाय केवल उनसे आगे निकलने की सोचने लगते हैं, तब यही तुलना ईष्र्या, असंतोष और आत्म-संदेह में बदल जाती है। हम सभी ने कभी न कभी महसूस किया है कि हमारे आसपास का कोई व्यक्ति हमसे बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, अधिक पहचान पा रहा है या वह सफलता की उस ऊंचाई पर पहुंच गया है जिसकी हमें भी लालसा थी। ऐसे क्षणों में जो बेचैनी महसूस होती है, वह ईष्र्या का एक तरह से पहला संकेत है लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करते। हम इसे ‘अन्याय’, ‘भाग्य का खेल’, या ‘उनकी चालाकी’ कहकर खुद को समझाते हैं। डेरेन का कहना है कि ईष्र्या को मान लेना आसान नहीं, क्योंकि इसका मतलब है, यह स्वीकार करना कि हम किसी में कमी महसूस कर रहे हैं।
हम अंदर ही अंदर मानते हैं कि वह कुछ चीज हमारे पास नहीं है और यह स्वीकार करना हमारे आत्म-सम्मान के लिए चोटिल करने वाला होता है। यहां सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि यह तुलना हमारी ऊर्जा और ध्यान को गलत दिशा में मोड़ देती है। दूसरों के सफर को देखकर हम आत्म-मूल्य कम समझने लगते हैं। हम उनके मंच पर चमकते जीवन की तुलना अपने पर्दे के पीछे की वास्तविकता से करने लगते हैं। इसका परिणाम होता है असंतोष, भ्रम और मनोवैज्ञानिक थकावट। इससे निकलने का एक ही रास्ता है तुलना की दिशा को भीतर की ओर मोडऩा।
आपकी असली प्रतियोगिता किसी और से नहीं, सिर्फ आप से है। आज आप जो हैं, क्या आप कल उससे बेहतर हो सकते हैं? क्या आज आप सुबह वाले अपने वर्जन से अधिक अनुशासित, अधिक विनम्र, अधिक केंद्रित और अधिक स्पष्ट हैं? माइकल जॉर्डन ने कहा था, ‘मैं किसी और से प्रतिस्पर्धा नहीं करता। मैं अपनी ही क्षमता से प्रतिस्पर्धा करता हूं।’ वॉरेन बफेट ने इस विचार को आंतरिक स्कोरकार्ड का नाम दिया। उन्होंने कहा, ‘क्या आप वही काम कर सकते हैं जो आपको अच्छा लगता है, भले ही दुनिया उसे न पहचानती हो?’ यही असली संतोष है। दूसरों से तुलना करके आप खुद को कमजोर बनाते हैं, लेकिन जब आप अपनी तुलना स्वयं के बेहतर वर्जन से करते हैं, तो आप असीम विकास की ओर बढ़ते हैं। यह रास्ता कठिन जरूर है, लेकिन यह पूरी तरह आपके नियंत्रण में है। आपका लक्ष्य क्या होना चाहिए? हर दिन का अंत एक बेहतर संस्करण के साथ करना।
अगर आज आप थोड़ा बेहतर सोचते हैं, थोड़ा बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं, थोड़ा बेहतर कार्य करते हैं तो धीरे-धीरे आप अपने जीवन की दिशा बदल देंगे और तब वे लोग जिनसे आप पहले खुद को कमतर समझते थे, वे भी हैरान होंगे कि आपने कैसे खुद को इतना ऊपर उठा लिया। क्योंकि आपकी एकमात्र असली प्रतिस्पर्धा दूसरों से नहीं, कल के आप से है।
(विभिन्न वक्तव्यों से लिए गए अंश)

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