संपादकीय : भ्रामक तथ्यों को रोकने के लिए फैक्ट चेकर जरूरी
सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी के प्रसार को रोकने का पहला कदम ही होता है भ्रमित करने वाली जानकारी की पहचान करना। क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में कई बार फर्जी और असली जानकारी में फर्क करना मुश्किल हो जाता है और इससे बनने वाले भ्रम के हालात सामाजिक विद्वेष बढ़़ाने की वजह तक बन जाते […]
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सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी के प्रसार को रोकने का पहला कदम ही होता है भ्रमित करने वाली जानकारी की पहचान करना। क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में कई बार फर्जी और असली जानकारी में फर्क करना मुश्किल हो जाता है और इससे बनने वाले भ्रम के हालात सामाजिक विद्वेष बढ़़ाने की वजह तक बन जाते हैं। एक तथ्य यह भी है कि झूठी जानकारी वास्तविक के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलती है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस की चेतावनी को इसी खतरे से जोड़कर देखा जाना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया पर फैक्ट चेक और मॉडरेशन सुरक्षा उपायों में कटौती से नफरत का माहौल तेजी से बढऩे का खतरा है। साथ ही इस जहरीले माहौल से सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से लोगों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बढ़ जाएगा।
गुटेरस ने यह बात ऐसे वक्त में कही है जबकि मेटा (फेसबुक) ऐलान कर चुका है कि वह अपने मंच से फैक्ट चेकर का फीचर हटाने जा रहा है। गुटेरस का यह कहना सही है कि आज जीवन के हर क्षेत्र में जिस तरह से प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो रहा है उसमें मानवाधिकारों के हनन का खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि सोशल मीडिया मंच विचार-विमर्श के बेहतरीन माध्यम भी बन सकते हैं। माना जा रहा है कि अमरीका में सत्ता बदलाव के बाद बन रही नीतियों के तहत खुद को ढालने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेडस की मूल कंपनी मेटा ने फैक्ट चेकर कार्यक्रम फिलहाल अमरीका में बंद करने की बात कही है। भारत जैसे देश में भी मेटा इस तरह की प्रक्रिया देर-सवेर लागू करता है तो कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। यह इसलिए भी क्योंकि भारत में फेक कंटेंट के जरिए सामाजिक विद्वेष बढ़ाने, चारित्रिक लांछन और राजनीतिक फायदे उठाने के मामले सामने आते रहे हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि हमारे यहां फैक्ट चेक कर रहे न्यूज पोर्टल व अन्य सोशल मीडिया मंच अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। कई भारतीय संस्थाएं थर्ड-पार्टी फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम का हिस्सा बनकर मेटा से फंडिंग हासिल कर रही हैं। ऐसे में इनके सामने भी संकट आ सकता है। देखा जाए तो फेक कंटेंट को रोकने की सबसे पहली जिम्मेदारी उसी सोशल मीडिया मंच की होनी चाहिए, जहां इसको सबसे पहले पोस्ट किया गया है। ये मंच ही अपनी इस जिम्मेदारी से दूर होने लगेंगे तो जाहिर है ऐसी जानकारी वायरल होते देर नहीं लगने वाली। संयुक्त राष्ट्र महासचिव की यह चिंता भी वाजिब ही है कि घृणास्पद विचारों को फैलने से नहीं रोका गया तो मौखिक हमलों के शारीरिक हिंसा में बदलते देर नहीं लगने वाली।
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