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पूंजीवादी शासन व्यवस्था का नया रूप ‘गोल्ड कार्ड’

डॉ. मनन द्विवेदी, आइआइपीए में संकाय सदस्य

जयपुरMar 05, 2025 / 10:57 pm

Sanjeev Mathur

आदर्श रूप से नागरिकता अधिकारों को किसी भी आर्थिक बाधा से मुक्त होना चाहिए और आवाजाही, यात्रा और बसने की स्वतंत्रता सर्वोपरि होनी चाहिए, लेकिन नागरिकता का अमरीकी संस्करण अपनी प्रकृति, मंशा और प्रक्रिया में कुछ अलहदा है। भारतीयों और अन्य विदेशी नागरिकों को अमरीका से निर्वासित किए जाने के अलावा, 1990 में एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया के रूप में ईबी-5 वीजा कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके तहत अमरीकी नागरिकता और आप्रवासन सेवा ने ग्रीन कार्ड प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 50 लाख डॉलर के पूंजी निवेश की शर्त रखी थी, जिसे आगे ‘गोल्ड कार्ड’ में परिवर्तित किया जा सकता था। हाल ही राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक नई नीति की घोषणा की है, जिसके तहत विदेशी धनाढ्य नागरिक अमरीकी अर्थव्यवस्था में निवेश कर रोजगार सृजन के माध्यम से नागरिकता खरीद सकते हैं। इससे पहले, अमरीकी सरकार के पुराने वीजा कार्यक्रम में एक निश्चित सीमा थी, जिसमें प्रति वर्ष अधिकतम दस हजार लोगों को ही अमरीका में प्रवेश की अनुमति मिलती थी। अब, यह धारणा बन रही है कि स्वयं एक उद्यमी रहे ट्रंप वास्तव में अमरीकी नागरिकता को बाजारू वस्तु बना रहे हैं। यह पूंजीवादी शासन व्यवस्था का एक नया रूप है, जहां एक राष्ट्र और उसकी प्रशासनिक नीति भी बाजार की तरह संचालित की जा रही है।
हालांकि, इस नीति के पीछे ट्रंप की छिपी मंशा अमरीकी व्यापार घाटे को कम करना है। हाल ही एलन मस्क और राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी कैबिनेट के साथ हुई बैठक में बताया था कि पिछली सरकारों ने राष्ट्रीय बजट घाटे को बढऩे दिया और राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए, जिससे अमरीका के दिवालिया होने का खतरा था। नई ‘गोल्ड कार्ड’ योजना कुशल भारतीय पेशेवरों और अमरीकी उद्योग-सरकार में कार्यरत भारतीयों के लिए जटिलताएं पैदा कर रही है। पुराना ईबी-5 वीजा इस मायने में अलग था कि यह उन लोगों को पात्र बनाता था, जो अमरीकी कॉर्पोरेट और औद्योगिक क्षेत्र में विभिन्न सेक्टरों में दस लाख डॉलर का निवेश करते थे। ट्रंप 2.0 गोल्ड कार्ड प्रस्ताव का उद्देश्य दुनिया और विशेष रूप से भारत के अमीर तबके को लक्षित करना है, जिससे अमरीकी स्थायी निवास प्राप्त करना भारतीय अमीरों के लिए और महंगा हो जाएगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित ‘गोल्ड कार्ड’ वीजा योजना की वित्तीय शर्तें पांच गुना बढ़ाकर 50 लाख डॉलर कर दी गई हैं। अधिक लागत के कारण यह योजना मध्यम श्रेणी के निवेशकों की पहुंच से बाहर हो गई है, भले ही यह अमरीकी नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक तेज और आसान तरीका है। इस योजना में रोजगार सृजन की शर्त को भी हटा दिया गया है, जिससे यह प्रक्रिया बिना किसी बाधा के पूरी हो सकती है।
पुरानी योजना और ट्रंप की गोल्ड कार्ड योजना के बीच मूलभूत अंतर यह है कि यह पहले की तुलना में अधिक महंगी है और उच्च मध्यम वर्ग के निवेशकों को अमरीका में निवास करने के अवसर से वंचित कर देती है। नई गोल्ड कार्ड योजना में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को भी हटा दिया गया है। इसमें पहले से ही अमरीका में कार्यरत भारतीय कुशल श्रमिकों के लिए ग्रीन कार्ड की उपलब्धता और समय सीमा जैसे नए प्रावधान जोड़े गए हैं। एच-1बी वीजा धारकों को भी ‘गोल्ड कार्ड’ योजना के तहत अपनी स्थायी निवास स्थिति बदलने की अनुमति दी गई है, लेकिन पुरानी ईबी-5 योजना के अंतर्गत भारतीय आवेदक ऋण लेकर और सामूहिक रूप से पूंजी निवेश कर सकते थे। जबकि, ट्रंप की नई योजना में पूंजी निवेश की शर्तें अधिक कठोर और पूंजीवादी मानसिकता को दर्शाने वाली हैं। ट्रंप इस योजना के औचित्य के रूप में यह तर्क दे रहे हैं कि अमरीका की कुछ कॉर्पोरेट कंपनियां भारतीय कर्मचारियों को सुचारू रूप से समायोजित नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उनकी आप्रवासन स्थिति स्पष्ट नहीं है। इस प्रकार नई योजना भारतीय आवेदकों के लिए नई वाणिज्यिक और कानूनी बाधाएं खड़ी कर रही है और यह दर्शाती है कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियां पूरी तरह से आर्थिक लाभ केंद्रित हैं।

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