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वो दिन नहीं भूल सकता, जब डॉक्टर ने बताया मुझे कैंसर है…

कैंसर का इलाज सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से भी तोडऩे वाला होता है। पहली कीमोथेरेपी के बाद जब बाल झडऩे लगे और कमजोरी ने जकड़ लिया, तब एहसास हुआ कि यह लड़ाई कितनी कठिन होने वाली है।

जयपुरMar 06, 2025 / 01:18 pm

Neeru Yadav

cancer risk

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मुनीष भाटिया

जब डॉक्टर ने बताया कि मुझे कैंसर है, तो मानो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई… वो दिन नहीं भूल सकता। मैं हमेशा से अपने परिवार का सहारा रहा हूं। घर की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर थी, लेकिन उस दिन पहली बार मुझे लगा कि अब मैं शायद खुद अपने ही लिए बोझ बन जाऊंगा। कैंसर का इलाज सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और आर्थिक रूप से भी तोडऩे वाला होता है। पहली कीमोथेरेपी के बाद जब बाल झडऩे लगे और कमजोरी ने जकड़ लिया, तब एहसास हुआ कि यह लड़ाई कितनी कठिन होने वाली है। लेकिन इससे भी बड़ा डर था- मेरे परिवार का भविष्य। इलाज की लागत इतनी अधिक कि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी बीमारी से लड़ूं या परिवार की आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए काम करूं। मैंने इलाज के लिए कई अस्पतालों के चक्कर काटे। सरकारी अस्पतालों में लंबी कतारें और इलाज में होने वाली देरी ने मुझे निराश कर दिया। निजी अस्पतालों में इलाज संभव तो था, लेकिन खर्च इतना अधिक था कि मेरी बचत भी कम पडऩे लगी। कर्ज के रूप में बोझ बढ़ता गया। कई बार ख्याल आया कि अगर मैंने इलाज छोड़ दिया, तो शायद परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित रख पाऊंगा। लेकिन फिर मेरे बच्चों के चेहरे याद आते, जिनके लिए मैं जीना चाहता था। मैंने अपनी तकलीफों को छुपाकर हिम्मत दिखाई, लेकिन अंदर ही अंदर टूटा जा रहा था। मुझे एहसास होता है कि सिर्फ बीमारी से लडऩा ही नहीं, बल्कि समाज की सोच और आर्थिक कठिनाइयों से भी जूझना पड़ता है। अगर सरकार कैंसर के इलाज को सस्ता और अधिक सुलभ बना दे, तो शायद न जाने कितने लोग समय पर सही इलाज पा सकें और जिंदगी की ओर वापसी कर सकें। मेरी फोर्थ स्टेज की लड़ाई या हर उस इंसान की लड़ाई जो इस बीमारी का शिकार होता है, आसान नहीं है।
भारत में कैंसर का प्रभाव न केवल शारीरिक और मानसिक स्तर पर बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी गहरा पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे यह देश के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बन गया है। 2022 में, भारत में 14 लाख से अधिक नए कैंसर मामले दर्ज किए गए और इस बीमारी के कारण 9 लाख से अधिक मौतें हुईं। महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे आम है, जो लगभग 27त्न मामलों के लिए जिम्मेदार है, जबकि पुरुषों में होंठ और मौखिक गुहा का कैंसर 15.6त्न और फेफड़ों का कैंसर 8.5त्न मामलों में पाया गया। कोलन कैंसर के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, जहां अनियमित खान-पान और जंक फूड की अधिकता इसका प्रमुख कारण है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, हर साल कैंसर के 13 लाख से अधिक नए मामले सामने आते हैं और आने वाले वर्षों में इस संख्या के और बढऩे की आशंका है। तंबाकू, शराब, प्रदूषण और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली कैंसर के बढ़ते मामलों के प्रमुख कारण हैं। कैंसर के इलाज की उच्च लागत और जागरूकता की कमी के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यदि बीमारी शुरुआती चरणों में पकड़ में आ जाए, तो इलाज की संभावना बेहतर होती है, लेकिन जागरूकता और नियमित स्वास्थ्य जांच की कमी के कारण अधिकतर मरीज अंतिम चरण में ही डॉक्टर के पास पहुंचते हैं।
सरकार को चाहिए कि कीमोथेरेपी और इम्यून थेरेपी की दवाइयों को सस्ता किया जाए ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग भी इसका लाभ उठा सके। निजी अस्पतालों द्वारा इलाज की मनमानी फीस वसूली पर नियंत्रण किया जाए और अधिक से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से जोड़ा जाए, जिससे गंभीर बीमारियों का इलाज बिना आर्थिक बोझ के किया जा सके। कई लोग कहते हैं कि कीमोथेरेपी और सर्जरी से कैंसर फैलता है, जबकि यह पूरी तरह गलत है। हालांकि मरीजों को केवल योग्य डॉक्टरों और प्रमाणित चिकित्सा पद्धतियों पर भरोसा करना चाहिए और बिना वैज्ञानिक प्रमाण वाली सलाहों से बचना चाहिए, ताकि वे सही समय पर उचित इलाज प्राप्त कर सकें और स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ सकें।

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