प्रसंगवश: निवेश को बढ़ावा देंगे आवागमन के सुविधायुक्त साधन
जाहिर है कि तमाम दूसरे शहरों के लिए भी इस तरह के नवाचार नजीर बन रहे हैं। क्योंकि संवेदनशील प्रयासों के जरिए ही ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। बच्चों में पढ़ाई का दबाव और एक हद तक अभिभावकों की बच्चों को लेकर की जाने वाली उम्मीदें ऐसी घटनाओं के लिए एक हद तक जिम्मेदार हैं। ऐसे में न केवल कोटा बल्कि समूचे राजस्थान में बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसे प्रयासों की दरकार है। लेकिन आत्महत्या के मामलों को प्रेम प्रसंग से जुड़ा बताने वाले शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के बयान ऐसे प्रयासों की अहमियत कम करने वाले साबित हो रहे हैं।जीवनदायिनी कितनी जीवनरक्षक…जांचने का सिस्टम ही बीमार
खुद शिक्षा मंत्री ऐसे विवादित बयान देकर संवेदनशील मामलों को हवा में उड़ाते नजर आएं तो फिर दोष किसको दें? होना तो यह चाहिए कि जयपुर, जोधपुर और सीकर जैसे शहरों में जहां लाखों बच्चे घर से दूर अकेले रहकर पढाई कर रहे हैं वहां भी कोटा जैसे नवाचार शुरू किए जाएं।अभिभावकों को भी समझना होगा कि उनका सपना टूट जाए तो कोई बात नहीं, लेकिन बच्चे का हौसला नहीं टूटना चाहिए। कोई भी परीक्षा जिंदगी से बड़ी नहीं है। बेशक, कोटा की यह पहल बच्चों को सीख देती है कि है कि एक सपना साकार नहीं हुआ तो क्या… सपनों का ‘सारा जहां’ उनके सामने है।ashish.joshi@epatrika.com