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Opinion : ट्रंप की नीतियों पर टिकीं दुनिया की निगाहें

अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शपथ लेने के तुरंत बाद अपने फैसलों से दुनिया का ध्यान खींच लिया है। इनमें बर्थ राइट सिटीजनशिप समाप्त करने सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर होना भी शामिल है। ट्रंप के फैसले से 10 लाख भारतीयों पर भी असर पडऩे की आशंका है। वैसे तो ट्रंप ने शपथ ग्रहण […]

जयपुरJan 21, 2025 / 11:09 pm

Anil Kailay

अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शपथ लेने के तुरंत बाद अपने फैसलों से दुनिया का ध्यान खींच लिया है। इनमें बर्थ राइट सिटीजनशिप समाप्त करने सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर होना भी शामिल है। ट्रंप के फैसले से 10 लाख भारतीयों पर भी असर पडऩे की आशंका है। वैसे तो ट्रंप ने शपथ ग्रहण के बाद अपने संबोधन में ही अपनी नीतियों को लेकर स्पष्ट संकेत दे दिए हैं। अब इसका वास्तविक असर विश्व समुदाय की प्रतिक्रियाओं में देखने को मिलेगा। इनकी वजह से ही वैश्विक शक्ति संतुलन में परिवर्तन भी होना तय है। अपने संबोधन में ट्रंप ने संरक्षणवाद की ओर लौटने का संकेत दिया है। ‘अमरीका फस्र्ट’ की नीति अमरीकी अर्थव्यवस्था में कुछ क्षेत्रों को लाभ पहुंचा सकती है, लेकिन उनका दीर्घकालिक प्रभाव न केवल अमरीका बल्कि समूची दुनिया के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। क्योंकि ट्रंप की नीतियां अमरीकी उत्पादों को बढ़ावा देने व विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने पर केंद्रित रहेंगी।
स्वाभाविक रूप से अमरीकी नीतियों से वैश्विक व्यापार में अस्थिरता के दौर में छोटी व मध्यम अर्थव्यवस्थाओं को चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में चीन और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक व्यापार में अधिक प्रभावशाली हो सकती हैं। ट्रंप के संरक्षणवाद से वल्र्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका सीमित होने का अंदेशा भी कम नहीं। वहीं डॉलर की मजबूती अन्य मुद्राओं पर दबाव बढ़ा सकती है। सब जानते हैं कि ट्रंप का रुख जलवायु परिवर्तन समझौतों और पर्यावरणीय नीतियों के खिलाफ रहा है। ट्रंप के शासन के दौरान जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक प्रयासों को झटका लग सकता है। इससे ग्रीन एनर्जी और कार्बन उत्सर्जन में कमी के प्रयास भी धीमे पड़ सकते हैं। कूटनीतिक जानकार पहले से ही कहते आए हैं कि ट्रंप का दूसरी बार राष्ट्रपति बनना विश्व कूटनीति में अस्थिरता, ध्रुुवीकरण और तनाव को बढ़ाने वाला हो सकता है।
जाहिर तौर पर इससे प्रमुख शक्तियों के बीच स्पर्धा के साथ तनाव भी बढ़ सकता है। माना जा रहा है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमरीका और चीन के बीच व्यापार युद्ध व तकनीकी प्रतिस्पर्धा और तेज हो सकती है। यह बात और है कि ट्रंप की चीन-विरोधी नीतियां कहीं न कहीं भारत के हित में होंगी लेकिन देशों का नया ध्रुवीकरण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को और जटिल बनाने वाला होगा। पूंजीपतियों के सहारे सत्ता संभालने वाले ट्रंप का कार्यकाल पिछली बार से अलग रह सकता है। ऐसे में भारत को नजर बनाए रखनी होगी ताकि हमारे हितों को आंच न आ पाए।

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