scriptदो टूक: सरकार की बेरुखी कब तक? | Patrika News
ओपिनियन

दो टूक: सरकार की बेरुखी कब तक?

राज्य के फिजियोथेरेपी चिकित्सक वर्षों से अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही।

जयपुरMar 02, 2025 / 05:02 pm

Amit Vajpayee

Gajendra Singh Khinvsar
अमित वाजपेयी

राज्य के फिजियोथेरेपी चिकित्सक वर्षों से अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। फिजियोथेरेपी कॉडर का पुनर्गठन, स्टाफिंग पैटर्न में संशोधन, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पद सृजन, इंटर्नशिप शुल्क माफी और स्टाइपेंड जैसी बुनियादी मांगों पर भी सहमति नहीं बनी। यह बेहद शर्मनाक है, मंत्री और अधिकारी सुनवाई तक को तैयार नहीं हैं। आखिर उनका काम क्या है? आमजन की समस्या का समाधान या स्वयं की स्वार्थ सिद्धि।
चिकित्सा मंत्री गजेंद्रसिंह खींवसर ने फिजियोथेरेपिस्ट के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को सुना जरूर, लेकिन कोई मतलब नहीं निकला। वर्षों से पीड़ा झेल रहे फिजियोथेरेपिस्ट की मांगों का त्वरित निस्तारण करने की बजाय अधिकारियों को जल्द समाधान करने के निर्देश देकर इतिश्री कर ली गई। मंत्री से वार्ता हुए भी आठ दिन बीत चुके, लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्या मंत्री के निर्देश मात्र औपचारिकता थे? क्या ब्यूरोक्रेसी मंत्री के आदेशों को ठेंगा दिखा रही है? ऐसे में मंत्री की क्षमता पर भी सवाल उठते हैं। यदि मंत्री के स्पष्ट निर्देश के बावजूद अधिकारी जनसमस्याओं का समाधान नहीं करते तो ऐसे अफसरों को तो तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए।
बजट रिप्लाई में आयुष्मान आरोग्य योजना (मां) के अंतर्गत उच्च तकनीक से किए जाने वाले नए प्रोसीजर को शामिल किया गया, लेकिन फिजियोथेरेपिस्ट की सेवाओं को नजरअंदाज कर दिया गया। यह न केवल आमजन के साथ अन्याय है, बल्कि सरकार की नीति और नीयत दोनों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
राज्य में आरयूएचएस और अन्य डीम्ड विश्वविद्यालयों के अंतर्गत बीपीटी, एमपीटी और पीएचडी कोर्स संचालित हो रहे हैं, लेकिन पिछले 14 वर्ष में मात्र 63 पदों पर भर्ती प्रक्रिया पूरी की गई है। क्या सरकार केवल कॉलेज खोलकर और मोटी फीस वसूलकर छात्रों का भविष्य अंधकार में डालने का काम कर रही है?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत निकाली गई विज्ञप्ति में फिजियोथेरेपिस्ट और रिहैबिलिटेशन वर्कर की शैक्षणिक योग्यता को समान माना गया है, जबकि हकीकत में यह पूरी तरह गलत है। बैचलर इन फिजियोथेरेपी की डिग्री रखने वाला ही फिजियोथेरेपी चिकित्सा दे सकता है, लेकिन सरकार नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सर्टिफिकेट और डिप्लोमा धारकों से सेवाएं दिलवाने की कोशिश कर रही है। यह न केवल मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ है, बल्कि योग्य फिजियोथेरेपिस्ट के साथ अन्याय भी है।
नेशनल कमीशन एलाइड एंड हेल्थ केयर काउंसिल में चेयरपर्सन की नियुक्ति अभी भी कोर्ट में अटकी हुई है, जबकि राजस्थान सरकार ने मनमाने तरीके से नियुक्ति कर दी। इससे सरकार की कार्यशैली और नियमों की अनदेखी करने की प्रवृत्ति स्पष्ट होती है।
अब समय आ गया है कि सरकार और संबंधित अधिकारी इस लचर रवैये से बाहर निकलें और फिजियोथेरेपिस्ट की जायज मांगों पर त्वरित निर्णय लें। बदलती जीवन शैली में लोगों की सेहत से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है।

Hindi News / Prime / Opinion / दो टूक: सरकार की बेरुखी कब तक?

ट्रेंडिंग वीडियो