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अभियोजन स्वीकृति नहीं देने का मकसद भ्रष्टाचारियों को बचाना

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनीतिक दबाव और अफसरों के चहेता होना अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने का बड़ा कारण है। इसके अलावा कुछ मामलों में एसीबी की ओर से भी जांच में कमी रह जाती है, इसका फायदा भ्रष्ट कर्मचारियों को मिल जाता है।

भरतपुरJan 21, 2025 / 04:39 pm

Meghshyam Parashar

ACB
मेघश्याम पाराशर
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनीतिक दबाव और अफसरों के चहेता होना अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने का बड़ा कारण है। इसके अलावा कुछ मामलों में एसीबी की ओर से भी जांच में कमी रह जाती है, इसका फायदा भ्रष्ट कर्मचारियों को मिल जाता है।
सरकारी महकमों में कहीं भी चले जाएं, बिना लिए—दिए काम नहीं होता यह लोगों की धारणा बन गई है। अब तो इसे सुविधा शुल्क का नाम दे दिया गया है जिसके बारे में यह भी तथ्य तय हो चुका है कि काम करवाना है तो संबंधित सरकारी कार्मिक को तय रकम देनी ही होगी। रिश्वत के नाम से चर्चित यह रकम कभी नकद ली जाती है तो कभी दूसरी सुविधाओं के नाम पर। हैरत की बात यह है कि हर बार चुनावों में राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ने का माहौल बनाते हैं और सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के प्रयासों में जुट जाते हैं।
तभी तो पिछले दस बरस के दौरान राजस्थान में भाजपा व कांग्रेस दोनों के ही राज में रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़े जाने वाले और आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोपी बनाए गए पटवारी से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और कांस्टेबल से लेकर रोडवेज परिचालक तक सबके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में मामला दर्ज होने के बावजूद सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने से ही मना कर दिया। दस साल में ऐसे मामले कोई दस—बीस नहीं बल्कि 723 हैं। यह स्वीकृति संबंधित विभागों के मुखियाओं को देनी थी। जाहिर है ये सब लोग सीधे—सीधे बचा लिए गए।

देखा जाए तो सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह है। भ्रष्टा​चारियों को पकडऩे के लिए बना महकमा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो कार्रवाई तो करता है, लेकिन ऐसे भ्रष्टाचारियों को बचाने में भी कोई सा महकमा पीछे नहीं है। हाल में ही सामने आया कि प्रदेश में वर्ष 2014 से 2018 तक भाजपा की सरकार में 328 भ्रष्टाचारियों को बचाया गया। वर्ष 2019 से 2023 तक कांग्रेस सरकार में 327 भ्रष्टाचारियों को अभियोजक स्वीकृति देने से मना कर बचाया। अब एक वर्ष में 68 अधिकारी-कर्मचारियों की अभियोजन स्वीकृति देने से इंकार कर दिया। असल में भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ केस चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने से ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों को सजा नहीं मिल रही है। कई मामलों में तो तीन साल गुजरने के बाद भी सक्षम अधिकारी या विभाग अभियोजन स्वीकृति नहीं दे रहे हैं।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि राजनीतिक दबाव और अफसरों के चहेता होना अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने का बड़ा कारण है। इसके अलावा कुछ मामलों में एसीबी की ओर से भी जांच में कमी रह जाती है, इसका फायदा भ्रष्ट कर्मचारियों को मिल जाता है। कहीं न कहीं भ्रष्टाचार फैलाने वाले अधिकारी-कर्मचारी प्रभावशाली होते हैं और खुद के बचाव के लिए कई सोर्स अपने पास रखते हैं। एसीबी जब पकड़ती है तो वे प्रभाव का उपयोग कर अभियोजन स्वीकृति देने वाले अफसरों पर राजनीतिक दबाव डलवाते हैं और फाइल सालों अटकी रहती है।
कहने को तो दो माह में अभियोजन स्वीकृति मिल जानी चाहिए। लेकिन इसकी पालना हो तब न। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का ढोल पीटना ही काफी नहीं बल्कि इस पर अंकुश के प्रयास भी करने होंगे। भ्रष्टाचारियों को बचाना तो एक तरह से भ्रष्टाचार को ही पोषित करना है।
meghshyam.parashar@in.patrika.com

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