कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी पर जताई नाराजगी
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने शबाना बानो की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि एक न्यायिक अधिकारी होने के बावजूद, जिसे पत्नी के कानूनी अधिकारों की पूरी जानकारी थी, उसने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर पत्नी को भत्ता देने में देरी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति ने परिवार न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया और पत्नी को न्याय पाने के लिए लंबी लड़ाई में उलझाए रखा।
शादी, विवाद और कानूनी लड़ाई की पृष्ठभूमि
शबाना बानो और अली रजा का निकाह 4 मई 2002 को हुआ था। याचिकाकर्ता के अनुसार, शादी के समय अली रजा सिविल जज थे और शादी में 30 लाख रुपये खर्च किए गए थे। इसके अलावा, एक इंडिका कार भी दी गई थी, फिर भी 20 लाख रुपये अतिरिक्त दहेज की मांग की गई। दोनों के चार बच्चे (तीन बेटियां और एक बेटा) हैं, जो पति के साथ रह रहे हैं। शबाना बानो का आरोप है कि 18 नवंबर 2013 को पति ने उन्हें घर से निकाल दिया और 2 दिसंबर 2013 को तलाकनामा भेज दिया। इसके बाद, उन्होंने झूठे आरोपों का डाक से जवाब दिया और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत परिवाद दाखिल किया।
64 बार सुनवाई, फिर भी नहीं आया अदालत में
कोर्ट ने बताया कि 15 जनवरी 2014 से अब तक इस मामले में 64 बार सुनवाई की तारीख तय हुई, लेकिन अली रजा नोटिस के बावजूद अदालत में हाजिर नहीं हुए। मामला मध्यस्थता (मिडियेशन) में भी भेजा गया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। पति ने 35 बार सुनवाई टलवाई और अंतरिम भत्ते की अर्जी पर 47 तारीखें ली गईं।
इसके अलावा, पति निष्पादन अदालत में भी पेश नहीं हुआ और न ही भत्ते का भुगतान किया। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय की धीमी अदालती प्रक्रिया पर भी नाराजगी जताई और इसे न्याय में देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया।
पत्नी को न्याय मिलने में हुई देरी
कोर्ट ने कहा कि शबाना बानो अपनी अर्जी दाखिल करने की तारीख से ही गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं। उन्होंने याचिका में भत्ते की राशि बढ़ाने की भी मांग की थी। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए साफ किया कि पत्नी को न्याय में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारी को जवाबदेह बनाया जाएगा और उसे उसका कानूनी अधिकार दिया जाएगा।