इलाहबाद विश्वविद्यालय में डॉ गुलाब कोठरी ने दिया व्याख्यान, कहा-अर्जुन बनकर पढ़े गीता
प्रयागराज के इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्पेशल लेक्चर का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य वक्ता के रुप में वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक डॉ. गुलाब कोठारी और विशिष्ट अतिथि के रुप में जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति जगद्गुरु रामसेवक दुबे शामिल हुए।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राचीन भाषा विभाग ने 06 फरवरी 2025 (बृहस्पतिवार) को ऋषि व्याख्यान माला के अंतर्गत विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया। ये आयोजन विश्वविद्यालय के तिलक भवन में किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंगलाचरण से हुआ जो संस्कृत विभाग के शोधार्थी अमृत प्रकाश दुबे किया। लौकिक मंगलाचरण शोधार्थी आयुषी सरोज ने किया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रुप में वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रसिद्ध लेखक डॉ. गुलाब कोठारी और विशिष्ट अतिथि के रुप में जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के कुलपति रामसेवक दुबे शामिल हुए।
विभागाध्यक्ष ने किया स्वागत
मंचासीन अतिथि डॉ गुलाब कोठरी और रामसेवक दुबे ने सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया। इस दौरान संस्कृत विभाग में शोधार्थी कोमल मिश्रा ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया। संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग नारायण मिश्र ने अतिथियों का वाचिक स्वागत किया।
मुख्य वक्त डॉ. गुलाब कोठरी ने क्या कहा ?
‘भगवद्गीता के वैज्ञानिक आयाम’ विषय पर मुख्य वक्ता डॉ गुलाब कोठारी ने अपने व्याख्यान में कहा कि गीता को सर्वदा इस भाव से पढ़ना चाहिए कि मानो भगवान श्रीकृष्ण हमसे कह रहे हैं। इस प्रकार हमें अर्जुन बनना पड़ेगा। गीता में भगवान केवल दो विषयों की पप्रधानता से चर्चा करते हैं -धर्म और कर्म। इसमें जो आत्मविषयक चिन्तन है वह धर्म है और जो विषाद की चर्चा है वह कर्म विचार है। गीता सृष्टि का विज्ञान है जो सभी प्राणियों पर एक नियम लागू करती है। धर्म ही ज्ञान है और कर्म ही विज्ञान है। विविधं ज्ञानं विज्ञानम् यह विज्ञान की परिभाषा है। मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम्। सम्भव: सर्वभूतानां ततो भवति भारत। इस मंत्र में पूरी सृष्टि प्रक्रिया वर्णित है। इस पर शोधार्थी विद्वानों को गूढ़ रहस्य परक विचार करना चाहिए।
कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने क्या कहा ?
कार्यक्रम का विशिष्ट वक्तव्य एवं अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राम सेवक दुबे जी ने कहा कि आज का व्याख्यान बहुत ही उत्तम रहा। ऐसे व्याख्यानों से विश्वविद्यालय और विभाग की कीर्ति चतुर्दिक् प्रसृत होती है। डॉ कोठारी जी गीता शास्त्र के अद्भुत चिंतक हैं। आपने कहा कि गीता में भगवान् ने स्पष्ट कहा है कि दुःखों से मुक्ति के लिए विज्ञान सहित ज्ञान की आवश्यकता है –ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेsशुभात्।
विभाग के सभी सदस्य रहें मौजूद
कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर अनिल प्रताप गिरि और मंच संचालन प्रोफेसर निरुपमा त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रधान कुलानुशासक प्रोफेसर राकेश सिंह, डॉ, डॉ विनोद कुमार, डॉ.विकास शर्मा, डॉ ललित कुमार, डॉ रेनू कोछड़ शर्मा, डॉ तेज प्रकाश चतुर्वेदी, डॉ आशीष त्रिपाठी, डा. कल्पना कुमारी, डॉ प्रतिभा आर्या, डॉ सन्दीप यादव, डॉ. प्रचेतस्, डा सन्त प्रकाश तिवारी, डॉ अनिल कुमार, डॉ बालखड़े भूपेन्द्र अरुण , डॉ सतरुद्र, तथा बहुत संख्या में शोध छात्र एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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