वजह यह है कि 2023 में स्थापित चीनी स्टार्टअप के एआइ मॉडल को विकसित करने में मात्र 56 लाख डॉलर की लागत आई है जबकि वह उसी स्तर के परिणाम दे रहा है जिन्हें हासिल करने के लिए ओपनएआइ को अरबों डॉलर का निवेश करना पड़ा था। ओपनएआइ को समय-समय पर धन जुटाने के लिए दूसरे निवेशकों की शरण में जाना पड़ता है। गूगल ने भी अपने जेमिनी एआइ पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं लेकिन डीपसीक पर बहुत कम धन खर्च हुआ है। यह घटना तकनीकी श्रेष्ठता, कारोबारी चुनौतियों और एआइ के भविष्य संबंधी नई संभावनाओं और हकीकतों की ओर इशारा कर रही है। यह घटना एआइ के क्षेत्र में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा की ओर भी इशारा करती है और नतीजतन विश्व राजनीति के समीकरणों से भी जुड़ती है। और हां, इसमें भारत जैसे देशों के लिए भी सबक और सूत्र छिपे हैं। ओपनएआइ-एनवीडिया सहित एआइ क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय दिग्गज डीपसीक की कामयाबी से आश्चर्यचकित भी हैं। डीपसीक, जनरेटिव एआइ के विकास संबंधी बुनियादी धारणाओं को चुनौती देता हुआ दिखाई दे रहा है।
आपको याद होगा कि जून 2023 में ओपनएआइ के सीईओ सैम ऑल्टमैन के भारत दौरे के समय तकनीकी विशेषज्ञ राजन आनंदन ने उनसे एक सवाल पूछा था जो बहुत चर्चित हुआ था। राजन ने पूछा कि क्या भारत का कोई स्टार्टअप एक करोड़ डॉलर जैसी सीमित रकम लगाकर ओपनएआइ जैसा फाउंडेशन मॉडल विकसित कर सकता है? जनरेटिव एआइ मॉडलों के विकास पर आने वाले अथाह खर्च की ओर इशारा करते हुए ऑल्टमैन ने जवाब दिया था कि (भारत के लिए) ओपनएआइ के साथ होड़ लेना पूरी तरह से ‘होपलेस’ (कोई उम्मीद नहीं) बात होगी। अपने अनुभव के लिहाज से ऑल्टमैन ने ठीक ही जवाब दिया होगा क्योंकि अब तक यही माना जाता रहा है कि जनरेटिव एआइ के फाउंडेशन मॉडलों का विकास अरबों-खरबों डॉलर की मांग करता है। उसके लिए अप्रत्याशित रूप से महंगे और बेहद शक्तिशाली जीपीयू, कंप्यूटिंग पावर और अथाह डेटा चाहिए।
डीपसीक ने इससे बदल दिया है। राजन ने तो एक करोड़ डॉलर की बात की थी, लेकिन डीपसीक ने तो वही काम सिर्फ 56 लाख डॉलर की लागत में कर दिखाया या कम से कम ऐसा दावा किया है। जाहिर है कि न सिर्फ एआइ कंपनियां बल्कि राजनेता, तकनीकी दिग्गज और बाजार भी सकते में हैं। तकनीकी दुनिया में यह भी कहा जा रहा है कि शायद चीन ने डीपसीक में इस्तेमाल किए गए संसाधनों को जान-बूझकर कम करके दिखाया है। एलन मस्क को भी ऐसा ही लगता है। यह भी आशंका जताई गई है कि शायद इस स्टार्टअप ने गैर-कानूनी रास्तों से डेटा, बौद्धिक संपदा और जीपीयू हासिल किए हों। लेकिन डीपसीक की कामयाबी एक तथ्य है।
क्या एआइ की दौड़ में चीन, अमरीका से आगे निकल रहा है? यह सवाल यकायक सामने आकर खड़ा हो गया है। चीन 2030 तक एआइ की विश्व-शक्ति बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। डीपसीक एआइ के क्षेत्र में उसकी अकेली बड़ी छलांग नहीं है। ‘डीपसीक आर 1’ के लांच होने के तीन दिन बाद ही चीनी कंपनी अलीबाबा ने दावा किया है कि उसके ‘क्यूवेन 2.5’ नामक मॉडल ने डीपसीक के सबसे उन्नत मॉडल को पीछे छोड़ दिया है। इससे पहले बाइदू कंपनी भी अर्नी बॉट के जरिए पश्चिमी कंपनियों को चुनौती दे चुकी है। एआइ के क्षेत्र में दाखिल किए जाने वाले पेटेंट के मामले में चीन पहले नंबर पर है जिसके पेटेंट्स की संख्या अमरीका की तुलना में छह गुना ज्यादा है। वीपो के अनुसार, 2023 तक चीन में 38,210 पेटेंट दर्ज किए गए, जबकि अमरीका में यह संख्या मात्र 6,276 रही। यह कहना जल्दबाजी होगी कि चीन एआइ की दौड़ में अमरीका से आगे निकल रहा है, लेकिन मौजूदा स्थिति को देखें तो वह बराबर का टक्कर दे रहा है। यह तब हो रहा है जब अमरीका ने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं से चीन को अत्याधुनिक एआइ जीपीयू, जैसे एनवीडिया एच100 और ए100, के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है। हालांकि, माना जाता है कि चीनी कंपनियां इसको दूसरे रास्तों से हासिल कर रही हैं।
डीपसीक का दावा है कि उसने एनवीडिया एच800 जैसे कम शक्तिशाली प्रोसेसरों का उपयोग किया है। उसने मल्टी-हेड लेटेंट अटेंशन (एमएलए) और मिक्सचर ऑफ एक्सपट्र्स जैसी तकनीकों को उन्नत किया, जिससे कम संसाधनों में बेहतर परिणाम संभव हुए। ‘डीपसीक आर1’ मॉडल को मेटा के ‘लामा 3.1’ की तुलना में मात्र 10त्न कंप्यूटिंग शक्ति की जरूरत पड़ी। डीपसीक ने अपने परिणाम केवल 27.8 लाख जीपीयू घंटों की ट्रेनिंग में प्राप्त कर लिए, जबकि मेटा को इसी स्तर तक पहुंचने में 3.08 करोड़ जीपीयू घंटे लगे। डीपसीक ने ब्रॉड-स्पेक्ट्रम मॉडल्स के बजाय विशिष्ट क्षेत्रों, जैसे चिकित्सा, वित्त और कानूनी सेवाओं पर केंद्रित मॉडल विकसित करने को प्राथमिकता दी, जिससे इन क्षेत्रों में उसके परिणाम अधिक प्रभावी साबित हो रहे हैं। पश्चिमी देशों की एआइ कंपनियां भी प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए अपनी रणनीतियों में तेजी से बदलाव करेंगी।
डीपसीक, अलीबाबा और बाइदू जैसी कंपनियों की सफलता भारत जैसे देशों को संदेश देती है कि नवाचार ही भविष्य है। यदि ठान लिया जाए, तो एआइ में कामयाबी पाना असंभव नहीं। आखिर, वैश्विक एआइ को आकार देने में भारतीय उद्यमियों और पेशेवरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पहले से ही मौजूद है।