Opinion : छत्तीसगढ़ कई दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है। नक्सली हिंसा की दहशत में इन क्षेत्रों में विकास का मार्ग अवरुद्ध सा हो गया है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और वहां के रहवासियों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए जरूरी है कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जाए। आज के समय में तो यह सर्वविदित है कि हथियार के दम पर किसी के जीवन में सुधार या विकास नहीं लाया जा सकता। नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के लोग भी अब इस बात को समझ गए हैं कि गन-तंत्र यानी कि बंदूक के दम पर जो लोग उनके हितैषी बनने का ढोंग रच रहे थे, उन्होंने इन लोगों को कुएं का मेंढक बना रखा था। विकास चाहिए तो मुख्यधारा के साथ ही प्रवाहमान होना होगा। मुख्यधारा यानी कि लोकतंत्र। नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्र के लोग गन-तंत्र वालों से डरकर मजबूरी में उनका साथ देते थे, वे अब उनका साथ छोड़कर लोक-तंत्र में मजबूत भागीदारी निभाकर मुख्यधारा में वापसी पर मुहर लगा रहे हैं। इसका पता इस बात से चल रहा है कि प्रदेश में हो रहे पंचायत चुनाव में उनका बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना है। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत निर्वाचन के लिए तीन चरणों में चुनाव होना है। ग्रामीण सरकार के लिए पंच, सरपंच, जनपद पंचायत और जिला पंचायत सदस्य चुनने को 17 फरवरी और 20 फरवरी को हुए चुनाव में बंपर मतदान हुआ। इसमें खास बात ये रही कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी जोरदार मतदान हुआ। सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा जिले के अनेक मतदान केंद्रों पर पहली बार अनेक दशकों के बाद ग्रामीण पंचायत चुनाव में मतदान हुआ। बस्तर में नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती में भी ग्रामीणों ने उत्साह के साथ मतदान किया। इसके मायने ये निकाले जा सकते हैं कि बस्तर में जनता ने विकास का मार्ग चुना है और हिंसा को बाहर का रास्ता दिखाया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए कहा कि बस्तर में गन-तंत्र पर गण-तंत्र की विजय हो रही है। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि छत्तीसगढ़ को मार्च 2026 तक नक्सल मुक्त करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के संकल्प पर साय सरकार पिछले 13 महीने से काम कर रही है। इसी का परिणाम है कि लोकतंत्र में वहां के लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। सरकार को चाहिए कि लोगों के लोकतंत्र पर इस विश्वास को मजबूती दे और वहां विकास की नई इबारत लिखे।