ठेकेदार के नियम, सरकार के नियमों पर भारी
राजसमंद जिले में मार्बल खनिज पर रॉयल्टी संग्रहण की जिम्मेदारी खनिज विभाग ने ठेके पर दे रखी है। सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं के अंतर्गत रॉयल्टी वसूलने का दायित्व ठेकेदार का होता है, लेकिन केलवा क्षेत्र में इस प्रणाली का सरेआम उल्लंघन हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, मार्बल खण्डा को बिना ई-रवन्ना के डंपरों में भरकर प्लांट्स तक पहुंचाया जा रहा है, जहां यह खण्डा पाउडर के रूप में तैयार होता है। इस प्रक्रिया में न तो कोई रॉयल्टी अदा की जाती है और न ही कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत किए जाते हैं। परिणामस्वरूप, सरकार के राजस्व खाते में एक रुपया भी नहीं पहुंचता।
ई-रवन्ना नहीं, नकद वसूली से चल रहा खेल
खनिज विभाग के नियमों के अनुसार, कच्चे माल (मार्बल खण्डा) पर रॉयल्टी 145 रुपए प्रति टन, साथ ही 10% डीएमएफटी (District Mineral Foundation Trust) और 2% RSMET (Rajasthan State Mineral Exploration Trust) फंड के साथ वसूली जानी चाहिए। लेकिन ठेकेदार द्वारा नियमों को दरकिनार करते हुए तैयार माल (पाउडर) पर नकद में सिर्फ 95 रुपए प्रति टन वसूले जा रहे हैं — वो भी बिना किसी रसीद या सरकारी रिकॉर्ड के। इससे न सिर्फ सरकार को नुकसान हो रहा है, बल्कि क्षेत्र को मिलने वाला विकास निधि भी प्रभावित हो रहा है।
डीएमएफटी और आरएसएमईटी फंड पर भी चोट
डीएमएफटी फंड का उपयोग खनन प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आपूर्ति और बुनियादी ढांचे के निर्माण में किया जाता है। वहीं, आरएसएमईटी फंड राज्य के खनिज संसाधनों के स्थायी विकास और अन्वेषण में लगाया जाता है। लेकिन जब अवैध रूप से माल निकाला और ले जाया जा रहा हो, और उसका कोई रिकॉर्ड ही सरकार के पास न हो, तो ये दोनों महत्वपूर्ण फंड सूखते जा रहे हैं।
सरकारी रिकॉर्ड में गायब उत्पादन और परिवहन
जब माल बिना ई-रवन्ना के निकलता है और नकद में रॉयल्टी ली जाती है, तो उसका कोई आंकड़ा राज्य के खनिज विभाग या वित्त विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होता। इससे सरकार को वास्तविक उत्पादन का अंदाजा नहीं लग पाता, जिससे भविष्य में रॉयल्टी ठेकों का मूल्यांकन भी प्रभावित होता है।
सिर्फ खानापूर्ति: एक डंपर जब्त कर इतिश्री
गुरुवार को खान विभाग की टीम ने मोखमपुरा क्षेत्र में एक डंपर को जब्त किया, जो बिना ई-रवन्ना के मार्बल खण्डा ले जा रहा था। एमई ललित बाछरा ने बताया कि मामले में अग्रिम कार्रवाई की जा रही है। लेकिन क्षेत्रवासियों और स्थानीय जागरूक नागरिकों का कहना है कि यह कार्रवाई न्याय की नहीं, बल्कि औपचारिकता की एक झलक मात्र है। क्षेत्र में प्रतिदिन सैकड़ों टन माल अवैध रूप से जा रहा है, ऐसे में एक डंपर की जब्ती पूरे रैकेट पर पर्दा डालने जैसा है। प्रश्नचिन्हों के घेरे में विभागीय कार्यप्रणाली
वर्तमान परिदृश्य में बड़ा सवाल यह है कि जब यह अवैध गतिविधि खुलेआम हो रही है, तब विभागीय निगरानी और निरीक्षण की जिम्मेदारी कौन निभा रहा है?
- क्या खान विभाग की मौन स्वीकृति भी इस खेल में शामिल है?
- या फिर ठेकेदार और अधिकारियों के बीच कहीं “समझौता” तो नहीं?
ग्राइंडिंग प्लांट्स की भूमिका पर संदेह
सूत्रों का दावा है कि यह अवैध नेटवर्क कुछ मार्बल ग्राइंडिंग प्लांट्स और रॉयल्टी ठेकेदारों की मिलीभगत से चल रहा है। प्लांट संचालक सस्ते में कच्चा माल पाकर लाभ कमा रहे हैं, जबकि सरकार को रत्तीभर भी सूचना नहीं। इस प्रकार, एक संगठित ‘मार्बल माफिया’ की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता।
विकास को लग रही है चोट, स्थानीय अधिकारों पर हो रहा है कुठाराघात
डीएमएफटी फंड से बनने वाले अस्पताल, स्कूल, सड़क, पेयजल योजनाएं और सामुदायिक सुविधाएं — सब इस अवैध रॉयल्टी चोरी की भेंट चढ़ रहे हैं। ऐसे में यह केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, क्षेत्र की जनता के अधिकारों का हनन भी है। अगर यह काली कमाई रोकी नहीं गई, तो आने वाले वर्षों में स्थानीय विकास पूरी तरह ठप हो सकता है।
क्या कहता है कानून?
राजस्थान खनिज नीति और केंद्र सरकार की MMDR Act (Mines and Minerals Development and Regulation Act) के तहत कोई भी खनिज उत्पाद बिना ई-रवन्ना या वैध रॉयल्टी दस्तावेज के परिवहन नहीं किया जा सकता। इसका उल्लंघन दंडनीय अपराध है और इसमें दोषियों पर जुर्माना व जेल तक का प्रावधान है। क्या होनी चाहिए कार्रवाई?
- खनन क्षेत्र में नियमित औचक निरीक्षण किए जाएं
- सीसीटीवी और जीपीएस मॉनिटरिंग से डंपरों की ट्रैकिंग हो
- बिना ई-रवन्ना के पकड़े गए माल पर भारी जुर्माना और डंपर जब्ती
- दोषी ठेकेदारों का लाइसेंस निलंबित कर उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही
- प्लांट संचालकों की भूमिका की जांच और आवश्यक कार्रवाई