scriptराजसमंद: यहां भीड़ नहीं, जनशक्ति है असली धन, पांच गौरव जो बदल सकते हैं क्षेत्र की तस्वीर | Rajsamand: Here, not the crowd but manpower is the real wealth, five prides that can change the picture of the region | Patrika News
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राजसमंद: यहां भीड़ नहीं, जनशक्ति है असली धन, पांच गौरव जो बदल सकते हैं क्षेत्र की तस्वीर

राजस्थान का हरा-भरा, पर्वतीय और खनिजों से भरपूर जिला राजसमंद अब अपनी भीड़ को बोझ नहीं मानता। कभी यही सवाल था कि इतनी बड़ी आबादी को काम कैसे मिले? लोग बाहर क्यों जाएं?

राजसमंदJul 11, 2025 / 11:51 am

Madhusudan Sharma

Kumbhalgarh Fort

Kumbhalgarh Fort

मधुसूदन शर्मा

राजसमंद. राजस्थान का हरा-भरा, पर्वतीय और खनिजों से भरपूर जिला राजसमंद अब अपनी भीड़ को बोझ नहीं मानता। कभी यही सवाल था कि इतनी बड़ी आबादी को काम कैसे मिले? लोग बाहर क्यों जाएं? लेकिन अब यह आबादी ही इस ज़िले की सबसे बड़ी ताकत मानी जा रही है। करीब 13.79 लाख लोग यानी जितनी आबादी वानुअतु, बरमूडा या डोमिनिका जैसे छोटे देशों की होती है। वहीं लोग अब यहां विकास के नए इंजन बन रहे हैं। इस बदलाव की धुरी हैं पांच क्षेत्र, जिन्होंने राजसमंद को पहचान दी और अब वही भविष्य का रास्ता भी खोल रहे हैं। जंगल से सीताफल, गांव-गांव फैला नीम, खदानों से निकला मार्बल-ग्रेनाइट, पहाड़ियों पर बसा कुंभलगढ़ और मिट्टी से उपजा हॉकी का जुनून।

जंगल से निकली मिठास, जेब में बढ़ी आमदनी-सीताफल की कहानी

कुंभलगढ़ की पहाड़ियां अब सिर्फ किले के लिए नहीं, बल्कि सीताफल की नैसर्गिक खेती के लिए भी मशहूर हो रही हैं। खास बात यह कि यह कोई खेत में बोया फसल नहीं, बल्कि जंगल की देन है। जिले में प्रशासन ने इसे ठेका प्रणाली से व्यवस्थित किया है-जंगल में पकेसीताफल को तोड़ा जाता है, फिर स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट में इसका पल्प तैयार होता है। यह पल्प आइसक्रीम, मिठाई और ड्रिंक्स इंडस्ट्री तक पहुंचता है। जयपुर, जोधपुर, पाली और अजमेर जैसे शहरों में यहां का सीताफल हाथों-हाथ बिकता है। 20 टन प्रतिदिन सीताफल बाहर भेजा जा रहा है। अब तक 7,000 किलो पल्प बिक चुका है। यानी जंगल की मिठास अब सीधी कमाई बन चुकी है।

नीम: हर गांव में पेड़, हर घर में रोजगार

राजसमंद के गांवों में नीम का पेड़ आम है। पहले ये बस छांव, दातून या देसी दवा तक सीमित थे, लेकिन अब ये रोजगार बन चुके हैं। लसानी गांव की ‘आवरा रानी महिला स्व-सहायता समूह’ ने नीम से ‘गोरमएफटीओ’ ब्रांड के तहत हर्बल साबुन बनाना शुरू किया। समूह की प्रियंका राठौड़ बताती हैं, “नीम तो था ही, बस सोच बदलनी थी।” आज इस समूह की 10 महिलाएं हर महीने 2,000 पैकेट साबुन बना रही हैं, जो सरकारी मेलों और बाजारों में खूब बिक रहा है। वहीं, वेरावास देवगढ़ के देवी सिंह रावत नीम से दवाइयों जैसे असर वाला नैचुरल साबुन बना रहे हैं, जो दाद-खाज जैसी बीमारियों में काम आता है। नीम के तेल को कीटनाशक के रूप में भी बेचा जा रहा है।

मार्बल-ग्रेनाइट: खनिज ही नहीं, शिल्प की नई तस्वीर

राजसमंद को यूं ही ‘मार्बलनगरी’ नहीं कहा जाता। राजनगर से नाथद्वारा तक सड़क के दोनों ओर सैकड़ों मार्बल-ग्रेनाइट की दुकानें इसकी शान हैं। लेकिन अब कहानी सिर्फ खदान और ब्लॉक बेचने तक सीमित नहीं। जिले के कारीगर अब इन पत्थरों से मूर्तियां, मंदिर, सजावटी सामान, गिफ्ट बॉक्स और झरोखे बना रहे हैं। हर साल यहां से 20 लाख टन ग्रेनाइट और 41.19 लाख मीट्रिक टन मार्बल निकलता है। कटिंग, डिजाइनिंग और फिनिशिंग ने इसे कच्चे पत्थर से कलाकृति बना दिया है। मुकेश सालवी जैसे कारीगर सुंदर मंदिर बनाकर देशभर में भेजते हैं और दूसरे लोगों को भी यह काम सिखा रहे हैं।

कुंभलगढ़: दीवारों से रोमांच तक

कुंभलगढ़ का किला दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (36 किमी) के लिए मशहूर है। लेकिन अब यह सिर्फ इतिहास नहीं, एडवेंचर टूरिज्म का नया ठिकाना बन गया है। जड़ता और पीपला की पहाड़ियां सर्दी में हिल स्टेशन जैसा नजारा देती हैं। यहां ट्रैकिंग, रॉक क्लाइंबिंग, कैंपिंग ने स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया है। निखिल पंचौली जैसे युवा अब तक 5,000 बच्चों और युवाओं को ट्रैकिंग सिखा चुके हैं। कुंभलगढ़ ने इतिहास से रोमांच तक की यात्रा कर ली है और इसने रोजगार को नया रास्ता दिया है।

हॉकी: मिट्टी से उगता राष्ट्रीय स्तर का हुनर

राजसमंद हॉकी में भी अपनी पहचान रखता है। यहां के खिलाड़ी कई बार राष्ट्रीय स्तर पर चमक चुके हैं।हंटर्स हॉकी क्लब जैसे संगठन जिले के बच्चों को हॉकी की ट्रेनिंग दे रहे हैं। भाणा गांव में एस्ट्रोटर्फ बन चुका है, जिससे अब खिलाड़ी राष्ट्रीय मानकों पर अभ्यास कर रहे हैं। मोहन कुमावत जैसे खिलाड़ी खुद बच्चों को खेल की बारीकियां सिखा रहे हैं। यहां से निकले खिलाड़ी देश के लिए खेलेंगे यही सपना अब गांव-गांव पल रहा है।

ये हैं राजसमंद की असली ताकत

सौरभ बाहेती, कुंभलगढ़– “मैंसीताफल के पल्प की प्रोसेसिंग कर इसे जयपुर, उदयपुर तक बेच रहा हूं — यही मेरी ताकत है।”

सुनीता कंवर, लसानी– “नीम के पेड़ से साबुन बनाती हूं, गांव की महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं। मैं हूं अपनी मिट्टी की शक्ति।”
मोहन कुमावत, हॉकी खिलाड़ी– “राष्ट्रीय स्तर पर खेला हूं, अब गांव के बच्चों को हुनर सिखा रहा हूं। मैं हूं राजसमंद की शक्ति।”

देवी सिंह रावत, वेरावास देवगढ़– “नीम से नैचुरल साबुन और तेल निकालता हूं, बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है- यही मेरी पूंजी है।”
मुकेश सालवी, मार्बल कारीगर – “पत्थरों से सुंदर मंदिर, मूर्तियां बनाता हूं-शिल्प के जरिए रोज़गार बढ़ा रहा हूं।”

निखिल पंचौली, ट्रैकिंग गाइड– “पांच हजार से ज्यादा युवाओं को साहसिक खेल सिखा चुका हूं। रोमांच ही मेरा रोजगार है।”

इनका कहना है

पंच गौरव में​ जिले के पांच महत्वपूर्ण चीजों को शामिल किया है। इसको महत्वपूर्ण मानते हुए इसके लिए जिले में कार्य शुरू कर दिया गया है। सीताफल, कुंभलगढ़, खेल के क्षेत्र में भी योजना तैयार कर ली है। इस दिशा में तेजी के साथ काम किया जा रहा है।
अरूण हसीजा, जिला कलक्टर, राजसमंद

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