इसके अलावा एम्स में नर्सिंग ऑफिसर, आयुर्वेद, वेटनरी में भी अपनी सेवा दे रहे हैं। हालांकि प्रदेश की सरकारों ने गांव की ओर पीठ कर रखी है जिसका नतीजा यह है कि गांव के स्कूल में आज तक भी विज्ञान संकाय नहीं है। चिकित्सा सेवा में जाने वाले युवाओं को अपना सपना पूरा करने के लिए अन्यत्र जाकर अध्ययन करना पड़ता है।
वर्तमान में साढ़े पांच हजार की आबादी वाले ग्राम नांगल से अस्सी के दशक में डॉक्टर बसंती लाल शर्मा एसएमएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करके गांव के पहले डॉक्टर बने थे और क्षेत्र में चिकित्सा सेवा में एक विशिष्ट पहचान बनाई थी। हालांकि दुर्भाग्य से सड़क दुर्घटना में उनका अल्पायु में निधन हो गया था। उसके बाद डॉक्टर मातादीन अग्रवाल डॉक्टर बने जो वर्तमान में चिकित्सा विभाग में अब डीडी बनकर जयपुर में सेवारत हैं। उनके बाद हर साल ये संख्या बढ़ती रही और तत्कालीन पीएमटी परीक्षा पास करके हर साल गांव से डॉक्टर बनने का सिलसिला शुरू हुआ और फिर नीट आने तक तो रफ्तार बढ़ गई।
गांव के डॉ. अशोक गर्ग एक प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट हैं और क्षेत्र के लोगों की सेवा करने में समर्पित है। गांव में स्कूल बस चालक कालूराम के बेटे डॉक्टर अशोक वर्मा और उनकी चिकित्सक पत्नी राजकीय चिकित्सा विभाग में सेवा दे रहे हैं। नांगल से बस ड्राइवर, ट्रैक्टर चालक, मजदूर, मोची, टाइल मिस्त्री, भट्टा मजदूर, किसान के बेटे डॉक्टर बन चुके हैं। कुछ युवाओं ने विदेश जाकर भी एमबीबीएस की है। हर साल नीट में यहां के बच्चे अच्छा कर रहे हैं।
इस बारे में डॉक्टर अशोक गर्ग कहते है कि मुझे यह जानकर खुशी होती है कि मेरे छोटे से गांव में हर साल डॉक्टर बनने वालो की संख्या बढ़ रही है। लड़कियां भी बराबर सफलता पा रही हैं। डॉक्टर अशोक वर्मा कहते है कि गांव में स्थित सीनियर स्कूल में विज्ञान संकाय होता तो ये संख्या का आंकड़ा और ज्यादा होता, आर्थिक अभाव और परिवहन सेवा के अभाव में कमजोर तबके के छात्र दूसरी जगह जाकर विज्ञान संकाय नहीं ले पाते हैं और मजबूरीवश दूसरे क्षेत्र में जाने को विवश होते है। नीट का परिणाम आता है तो ग्रामीणों में उत्सुकता रहती है और पूछते है इस बार गांव से कितने डॉक्टर बनेंगे।