शेख हसीना का वो एक फैसला…और बांग्लादेश में हो गया तख्तापलट, UN रिपोर्ट में खुलासा- एक-एक दिन का ब्यौरा आया सामने
Sheikh Hasina: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) की रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्र आंदोलन शांत हो ही रहा था लेकिन शेख हसीना सरकार के फैसलों की वजह से ये भड़क उठा।
UN Report on Bangladesh Sheikh Hasina role in Student Violence in 2024
UN Report on Bangladesh Coup: बांग्लादेश में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे चुकी शेख हसीना के छात्र आंदोलन में भूमिका को लेकर संयुक्त राष्ट्र की एक और रिपोर्ट जारी हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में जून-जुलाई में भड़का छात्र आंदोलन अस्थाई रूप से शांत हो ही रहा था कि पुलिस कार्रवाई में हुई हत्याओं और शेख हसीना (Sheikh Hasina) के फैसलों की वजह से ये आंदोलन (Student Protest in Bangladesh) फिर भड़क गया और आलम ये हो गया कि शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
बांग्लादेश की खबरों को कवर करने वाली ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR, Office of the United Nations High Commissioner for Human Rights) ने कहा है कि जुलाई के बीच से अगस्त 2024 की शुरुआत तक की हिंसक घटनाओं (Bangladesh Violence) ने शेख हसीना की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में नौकरी में आरक्षण (Job Reservation in Bangladesh) में कोटा सिस्टम पर छात्रों की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब तक आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। क्योंकि जब तक ये आदेश आया तब तक शेख हसीना के फैसलों से प्रदर्शनकारियों में और ज्यादा आक्रोश पैदा हो चुका था।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
रिपोर्ट ने कहा है कि छात्र आंदोलन के प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए 16 जुलाई, 2024 को शेख हसीना सरकार ने हाईकोर्ट के कोटा को लेकर जो फैसला आया था उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इसके बाद अगले दिन शाम को शेख हसीना ने जनता को संबोधन दिया कि कोर्ट का फैसला आने तक का इंतजार करें और दावा किया कि सुरक्षा कर्मी प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी।
लेकिन प्रदर्शनकारियों को ये संबोधन नागवार गुजरा, उन्होंने देशव्यापी बंद का ऐलान कर दिया। इधर विपक्षी पार्टी BNP और जमात-ए-इस्लामी ने भी इस बंद का समर्थन किया। इस पर शेख हसीना ने इन सभी से बातचीत करने के लिए कानून, शिक्षा और सूचना मंत्रियों को नियुक्त किया।
18 जुलाई को प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों ने बरसाई गोलियां
18 जुलाई 2024 को प्रदर्शनकारियों के साथ आम जनता भी सड़कों पर उतर आई। भीड़ के प्रदर्शन को रोकने के लिए सुरक्षा कर्मियों ने बल का प्रयोग किया। उन्होंने राइफलों, पिस्तौल और बन्दूकों के अलावा कम घातक हथियारों का इस्तेमाल किया। उत्तरा समेत कई जगहों पर सुरक्षा कर्मियों के हथियारों से लोग मारे गए। साथ ही घायलों के इलाज में भी रुकावट पैदा कीं।
इतना सब होते देख सरकार ने 18 जुलाई की शाम को BGB यानी बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बांग्लादेश की सेना) को ज्यादा से ज्यादा बल प्रयोग करने का आदेश दिया और पूरे देश में 23 जुलाई तक इंटरनेट बंद कर दिया गया। OHCHR ने इस रिपोर्ट में बताया कि अगले दिन 19 जुलाई, 2024 को BGB, पुलिस, रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) और दूसरे सुरक्षा बलों ने रामपुरा, बड्डा में और ढाका समेत देश भर में कई जगहों पर भीड़ पर गोली चलाई, लेकिन वे शांति कायम करने में नाकाम रहे।
18 जुलाई की आधी रात से कर्फ्यू का ऐलान
इसी दिन शाम को शेख हसीना ने आधी रात से कर्फ्यू लगाने का आदेश दे दिया। देश भर में 27000 सैनिकों को तैनात किया। इसके बाद 20 और 21 जुलाई को बड़े ऑपरेशन किए गए। रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा बलों ने ढाका-चटगांव हाइवे समेत कई प्रमुख सड़कों पर से भीड़ को हटाने के लिए लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं और हथियारों का इस्तेमाल किया।
21 जुलाई को आया सुप्रीम कोर्ट का आदेश
21 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी में आरक्षण के मामले पर फैसला सुनाया, जिसमें कोर्ट ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारीजन के लिए सार्वजनिक नौकरियों में आरक्षण के कोटे को 5% तक सीमित कर दिया। इस फैसले को सरकार ने स्वीकार कर लिया था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए देश भर में लोगों के परिवारों में गुस्सा फूट पड़ा था। आम जन की भावनाओं को भुनाते हुए 26 जुलाई 2024 को BNP ने सभी दलों और संस्थानों से हसीना सरकार के खिलाफ एकजु़ट होने का आह्वान किया।
25 जुलाई को लोगों से मिलीं शेख हसीना
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 25 जुलाई को शेख हसीना ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों और सुरक्षा कर्मियों के हथियारों से घायल हुए लोगों से मिलने उनके घर और अस्पताल भी पहुंची थी। जहां उन्होंने लोगों से बातचीत की और इस हिंसा को भड़काने के लिए विपक्षी दलों पर आरोप लगाया। इसके बाद 30 जुलाई, 2024 को सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और उससे जुड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया।
इन सब घटनाओं ने अगस्त की शुरुआत में सरकार के खिलाफ विरोध और बड़े स्तर पर हिंसक प्रदर्शनों को बढ़ावा दे दिया। लेकिन अब इन विरोध प्रदर्शनों की सिर्फ एक ही मांग थी कि ‘शेख हसीना और इनकी सरकार की इस्तीफा’।
4 अगस्त को हसीना की सेना प्रमुख के साथ बैठक
इधर प्रदर्शनकारियों का रुख भांपकर शेख हसीना सरकार ने 4 अगस्त को ढाका में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की एक बैठक बुलाई। इसमें सेना, BGB, पुलिस, खुफिया एजेंसियों और गृह, शिक्षा और विदेश मंत्रियों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया। इसी दिन शाम को इनकी एक और बैठक हुई। इस बैठक में एक योजना बनाई गई कि सेना और BGB पुलिस के साथ तैनात रहेंगे, ताकि अगर जरूरी हुआ तो तो बल प्रयोग कर प्रदर्शनकारियों को सेंट्रल ढाका में घुसने से रोक सकें।
5 अगस्त को सेंट्रल ढाका में घुसे प्रदर्शनकारी
इसके अगले ही दिन 5 अगस्त, 2024 को लाखों प्रदर्शनकारियों ने सेंट्रल ढाका की तरफ मार्च करना शुरू कर दिय़ा। तब पुलिस और हथियारबंद आवामी लीग समर्थकों (शेख हसीना की पार्टी) ने कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी कर दी। इसके बाद दोपहर तक सेना प्रमुख ने शेख हसीना से कहा कि उनकी सेना प्रदर्शनकारियों को प्रधानमंत्री आवास तक पहुंचने से नहीं रोक पाएगी। जिसके बाद आनन-फानन दोपहर करीब 2 बजे शेख हसीना को सशस्त्र बलों के हेलीकॉप्टर से ढाका से बाहर ले जाया गया और फिर देश से बाहर भारत भेज दिया गया।