scriptMagh Navratri 2025: माघ नवरात्रि 30 जनवरी से, इन मंत्रों और स्तोत्र से करें दस महाविद्या की पूजा, जानें क्या लगाएं भोग | Magh Navratri 2025 mantra from 30 January worship das Mahavidya stotra know das mahavidya bhog chandi stotra | Patrika News
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Magh Navratri 2025: माघ नवरात्रि 30 जनवरी से, इन मंत्रों और स्तोत्र से करें दस महाविद्या की पूजा, जानें क्या लगाएं भोग

Magh Navratri 2025 Mantra: माघ नवरात्रि 2025 गुरुवार 30 जनवरी से शुरू हो रही है। इस दिन तांत्रिक कलश स्थापना करेंगे, जबकि ज्यादातर अन्य भक्त सामान्य पूजा करेंगे। इसके लिए आपको जानना चाहिए दस महाविद्या के मंत्र, स्तोत्र और भोग …

भारतJan 30, 2025 / 04:34 pm

Pravin Pandey

Navratri Puja Magh 2025 Kalash Sthapana

Navratri Puja Magh 2025 Kalash Sthapana muhurt in 2 auspicious yoga Magh navratra puja vidhi: माघ नवरात्रि की सरल पूजा विधि

Magh Navratri Das Mahavidya Mantra: माघ नवरात्रि की पूजा की विधि चैत्र और शारदीय नवरत्रि की ही तरह है, बस इसमें मां पार्वती की दस महाविद्या की पूजा की जाती है, ज्यादातर तांत्रिक इस समय तंत्र साधना करते हैं। इसमें हर दिन ऊर्जा का अलग स्तर होता है।

हालांकि गृहस्थ भी मनोकामना पूर्ति, तंत्र से रक्षा की कामना के लिए दस महाविद्या की पूजा कर सकते हैं, वो भी दुर्गा सप्तशती और अन्य ग्रंथों की पूजा कर सकते हैं, मंत्रों का जाप कर सकते हैं। आइये जानते हैं माघ नवरात्रि में जपने के लिए दस महाविद्या मंत्र, दस महाविद्या स्तोत्र और भोग ..

सिद्ध चण्डी स्तोत्र


दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।


शिवजी बोलेः तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती हैं।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।


हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।

हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है। तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।


तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।


तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।

श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।

तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।

तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं। तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।


हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।


तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।


तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।


हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।

कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।

मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।


चौदस की रात में और शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।

केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।

जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।

दस महाविद्या के भोग और मंत्र (Das Mahavidya Bhog Aur Mantra)


मां काली


गुप्त नवरात्रि के पहले दिन साधना सिद्धि के लिए मां काली की पूजा की जाती है। देवी काली की पूजा भक्त की ऊर्जा को जागृत करने का समय होता है। इस समय पर देवी के समक्ष विभिन्न पूजन अनुष्ठान किए जाते हैं। देवी को श्रीफल अर्पित किया जाता है। देवी काली की पूजा में भोग के रूप में शहद अर्पित करना चाहिए। साथ ही नीचे लिखे काली मंत्र का जपना चाहिए ।

काली मंत्र

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

मां महाविद्या तारा

दस महाविद्या की दूसरी शक्ति देवी तारा हैं, माहविद्या तारा को एकजता, उग्रतारा और नीलसरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। सृष्टि की शक्ति इन्हीं में निहित है। देवी भक्तों को सभी दुखों से तारने वाली हैं। देवी तारा के पूजन में सरसों के तेल में बने पदार्थ, तेजपत्ता, नारियल, सूखे मेवे और रेवड़ियों का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि इससे देवी सुख और समृद्धि प्रदान करती हैं। साथ ही मां तारा का नीचे लिखा मंत्र जपना चाहिए..

तारा मंत्र


ॐ त्रीं ह्रीं, ह्रूं, ह्रीं, हुं फट्॥

महाविद्या ललिता


देवी ललिता सुख और सौभाग्य की देवी हैं। देवी ललिता का पूजन आर्थिक विपन्नता को दूर करने वाला होता है। ऋषि दुर्वासा और आदिगुरू शंकराचार्य भी देवी ललिता के परम भक्त थे। सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की स्तुति का वर्णन किया गया है।
देवी ललिता के पूजन में ललिता सहस्त्रनामावली का पाठ करने से सभी कष्ट दूर होते हैं, धन धान्य की प्राप्ति होती है। देवी ललिता के पूजन में श्वेत रंग से निर्मित खाद्य पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। देवी को खीर, श्वेत मिष्ठान और दूध से बने भोग चढ़ाना चाहिए। देवी के पूजन के बाद भोग को गरीबों में बांटने से रोग दोष शांत होते हैं। जीवन में सुख और सफलता का आगमन होता है।

ललिता मंत्र


ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:॥

महाविद्या भुवनेश्वरी


महाविद्या भुवनेश्वरी का पूजन सृष्टि के कल्याण और समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। देवी भुवनेश्वरी आदि शक्ति का स्वरूप हैं। भुवन की अधिष्ठात्रि देवी शत्रुओं का नाश करने के लिए सदैव सृष्टि में व्याप्त रहती हैं। इनकी शक्ति के द्वारा सृष्टि का संचालन अविरल रूप से होता है।
देवी का पूजन करने से संपत्ति से जुड़े सभी विवाद समाप्त होते हैं। महाविद्या भुवनेश्वरी का पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। देवी की पूजा से ज्ञान में वृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। पंच तत्वों में समाहित शक्ति को प्रदान करती हैं। देवी भुवनेश्वरी की पूजा में माता को मालपुआ का भोग लगाना चाहिए।

भुवनेश्वरी मंत्र


ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौंः क्रीं हूं ह्रीं ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः॥

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महाविद्या त्रिपुर भैरवी


महाविद्या त्रिपुर भैरवी को काली का स्वरूप माना गया है। त्रिपुर भैरवी के अनेक नाम हैं, इनकी अनेक सहायिकाओं को भैरवी रूप में भी जाना जाता है। देवी का स्वरूप शत्रुओं का नाश करने के लिए जाना जाता है। त्रिपुर की सुरक्षा का दायित्व इन्हें प्राप्त है। देवी त्रिपुर भैरवी जी का पूजन तंत्र और मंत्र दोनों ही साधनाओं के लिए उपयुक्त होता है।
देवी की साधना से शक्ति और बल की वृद्धि होती है। इनको गुड़, खाण्ड इत्यादि का भोग प्रिय है। देवी की पूजा में लाल चंदन भी चढ़ाना चाहिए। देवी को गुड़ का भोग लगाने से शत्रु बाधा शांत होती है। न्यायिक मामलों में विजय की प्राप्ति होती है।

महाविद्या त्रिपुर भैरवी मंत्र


ॐ ह्रीं त्रिपुर भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥

महाविद्या छिन्नमस्तिका


महाविद्या छिन्नमस्तिका को तंत्र में विशेष स्थान प्राप्त है। देवी का पूजन तांत्रिक कर्म में सफलता के लिए किया जाता है। देवी छिन्नमस्तिका का स्वरूप रौद्र है लेकिन इनका ममतामयी व्यवहार भक्तों को सिद्धि और सुख प्रदान करता है। इनकी पूजा सभी कष्टों का नाश कर कामनाओं की पूर्ति करती है। देवी को चिंताओं का नाश करने वाला माना गया है। इसलिए इन्हें चिंतपूर्णी नाम से भी जाना जाता है। देवी छिन्नमस्तिका के पूजन में माता को मीठे पान का भोग लगाना चाहिए। देवी के पूजन में शहद फर पान अर्पित करना चाहिए।


छिन्नमस्तिका मंत्र


ॐ वैरोचन्ये विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

महाविद्या धूमावती

माघ नवरात्रि में महाविद्या धूमावती जी की पूजा रोगों के नाश की कामना से की जाती है। देवी का स्वरूप धूम्र की भांति है। देवी का वर्णन रुद्रामल तंत्र में प्राप्त होता है। दस महाविद्याओं में माता सती का ये स्वरूप भगवान शिव को ग्रहण कर लेने के कारण मिला।
देवी ने जब भगवान शिव को निगल लिया तब उनकी देह से धुआं व्याप्त होने लगा, इस समय माता का स्वरूप शोक और दुखों को दूर करने वाला होता है। इनकी पूजा से रोग और दोष दूर होते हैं। दुख दारिद्र से मुक्ति के लिए भी इनकी पूजा की जाती है। देवी की पूजा में सरल और गरिष्ठ दोनों प्रकार के भोग लगाए जा सकते हैं। देवी की पूजा में तेल से बने पदार्थ और खिचड़ी को विशेष माना गया है।

धूमावती मंत्र


धूँ धूँ धूमावती स्वाहा॥

महाविद्या बगलामुखी


गुप्त नवरात्रि में आठवीं महाविद्या बगलामुखी की पूजा विशेष तंत्र साधना के लिए किया जाता है। तांत्रिक कर्म में देवी का को मुख्य स्थान प्राप्त है। देवी बगलामुखी पीताम्बरा के रूप में भी पूजी जाती हैं क्योंकि देवी का स्वरूप पीले रंग से मिलता जुलता है। इसीलिए देवी के पूजन में पीले रंग का विशेष उपयोग होता है।
देवी को हल्दी की माला चढ़ाी जाती है। माता स्तंभन की देवी हैं इसलिए जीवन में आने वाला कोई भी संकट इनके स्मरण मात्र से रूक जाता है। कष्ट की स्थिति टल जाती है। जीवन में किसी भी प्रकार के विवाद में विजय पाने के लिए बगलामुखी का पूजन किया जाता है। इन्हें पीले रंग के मिष्ठान, बेसन और हल्दी के भोग अर्पित किए जाते हैं।

महाविद्या बगलामुखी मंत्र


ह्लीं बगलामुखी विद्महे दुष्टस्तंभनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

महाविद्या मातंगी

देवी मातंगी शुभ और कोमल स्वरूप वाली हैं। देवी का पूजन नवें दिन होता है। कला और संगीत का स्वर इन्हीं में विराजित है। माता सभी सुखों के साथ जीवन में शुभता को प्रदान करने वाली होती हैं।
वाणी से संबंधित किसी भी परेशानी से बचाव के लिए मातंगी का पूजन बहुत शुभ माना जाता है। प्राणियों के जीवन में आनंद और संगीत का उद्घोष देवी के आशिर्वाद से ही संपन्न होता है। देवी जीवन में दुखों का नाश करती हैं दांपत्य जीवन में सुख प्रदान करने वाली होती हैं। देवी मातंगी को मिष्ठान और श्रीफल से बने भोग अर्पित करना चाहिए।

महाविद्या मातंगी मंत्र

ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा॥

महाविद्या कमला

दसवीं महाविद्या देवी कमला का स्वरूप अत्यंत शुभफलदायक है। देवी का यह स्वरूप सभी तरह के ज्ञान और बुद्धि को प्रदान करने वाला है। देवी के पूजन से अन्न धन की प्राप्ति होती है। जीवन में अभाव की समाप्ति होती है।
देवी कमला श्री का स्वरूप हैं। लक्ष्मी रूपा हैं इसलिए आर्थिक तंगी और कर्ज से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए इनका पूजन विशेष होता है। देवी कमला को खीर और केसर अर्पित करना शुभ होता है।

देवी कमला का मंत्र


ॐ ह्रीं हूं हां ग्रें क्षों क्रों नमः॥

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