गिद्धों पर अमरीकी शोध के परिणाम
शोध में बताया गया कि गिद्धों के खत्म होने से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण ने रोगों को बढ़ाया है। ये पांच वर्षों (वर्ष 2000-2005) में करीब पांच लाख लोगों की मौत हो वजह बने हैं। यह पर्यावरण से बैक्टीरिया और रोगजनक मृत जानवरों को खत्म करते हैं।किडनी हो गई खराब
डाइक्लोफिनेक दर्द निवारक दवायुक्त मांस खाने से गिद्धों की मौत का पता जांच में चला था। इससे गिद्ध को गाउट बीमारी हो रही थी। यूरिक एसिड के क्रिस्टल लिवर में चुभने से और किडनी खराब होने से उनकी मौत हुई।राजस्थान में 5 हजार गिद्ध, टाइगर रिजर्व में बढ़ रहा कुनबा
राजस्थान के 23 जिलों में 7 विभिन्न प्रजातियों के 5,080 गिद्ध हैं। इसमें 1,086 लंबी चोंच वाले गिद्ध, 325 सफेद पीठ वाले गिद्ध, 84 लाल सिर वाले गिद्ध, 2,413 मिस्र के गिद्ध और 1,172 प्रवासी गिद्ध यानी हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस गिद्ध शामिल हैं। सरिस्का टाइगर रिजर्व अलवर में 350 गिद्ध हैं।यह भी पढ़ें:
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जहां गिद्ध घटे, वहां मानव मृत्यु दर बढ़ी
आईवीआरआई प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अभिजीत पावड़े के मुताबिक कोरोना महामारी के दौरान गुजरात में एक गाय के शव पर चार गिद्ध मृत मिले थे। साइकॉन के वैज्ञानिक डॉ. मुरलीधरन ने उन्होंने मृत गाय के मांस और गिद्धों द्वारा खाए गए मांस की जांच की तो उसमें निमेसुलाइड पाई गई।गिद्ध ऐसे कम करता है संक्रमण
गिद्धों के पेट में बहुत ज़्यादा संक्षारक अल होता है, जो उन्हें सड़ते हुए जानवरों के शवों को खाने की अनुमति देता है। ये बचे हुए भोजन अक्सर एंथ्रेक्स, बोटुलिनम टॉक्सिन और रेबीज से संक्रमित होते हैं, जो अन्य जानवरों को मार सकते हैं। इसलिए, जब गिद्ध शवों को खाते हैं, तो वे बीमारियों को नियंत्रित रखते हैं।पशुओं पर प्रयोग की जाने वाली दर्द निवारक दवा निमेसुलाइड के बैन होने से गिद्धों की संया में 20 फीसदी तक का सालाना इजाफा हो सकता है। यही नहीं, इनकी कमी से पैदा होने वाला संक्रमण भी कम होगा, जिससे मानव मौतों की संया कम होगी। -डॉ. अभिजीत पावड़े, प्रधान वैज्ञानिक एवं वन्य प्राणी विभाग के प्रभारी, आईवीआरआई बरेली
सरिस्का में गिद्दों को अच्छा वातावरण मिल रहा है। आहार भी उपलब्ध हो रहा है। ऐसे में गिद्द चट्टानों व पेड़ों पर काफी दिखाई दे रहे हैं।
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