लोकसभा चुनाव में तालमेल का दिखा असर
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सपा और कांग्रेस में काफी खींचतान थी। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से शुरू हुई तल्खी गठबंधन न होने की कगार तक पहुंच गई थी। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व के हस्तक्षेप से हालात संभले, गठबंधन हुआ और कांग्रेस को 17 सीटें मिलीं। यूपी कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने मोर्चा संभालते हुए सभी 80 सीटों तक पहुंच बनाई और सपा-कांग्रेस की समन्वय बैठकें आयोजित कीं। इस तालमेल का असर आम चुनावों के नतीजों में भी दिखा, लेकिन चुनाव के बाद हालात बदलने लगे। मिल्कीपुर में दिखी गठबंधन में दरार की झलक
यूपी में उपचुनाव घोषित होते ही दोनों दलों के बीच की केमिस्ट्री खत्म होती गई। पहले 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, जहां कांग्रेस ने सभी सीटें सपा के लिए छोड़ दीं, लेकिन सांगठनिक सहयोग नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मुकाबला भाजपा और सपा के बीच 7-2 पर सिमट गया। यही स्थिति मिल्कीपुर में भी देखने को मिली।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही राहें अलग-अलग
कागजों पर सपा और कांग्रेस अब भी साथ हैं और इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन हकीकत में लोकसभा चुनावों के बाद से ही दोनों की राहें जुदा हो चुकी हैं। चुनाव दर चुनाव दरार बढ़ती जा रही हैं। यहां तक कि दिल्ली चुनाव आते-आते सपा कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी के पक्ष में प्रचार करती नजर आई। हरियाणा
हरियाणा में समाजवादी पार्टी की इच्छा थी कि उसे कुछ सीटें दी जाएं। जब ऐसा नहीं हुआ तो सपा ने हरियाणा चुनाव से खुद को अलग कर लिया।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र चुनाव में सपा को कांग्रेस और उसके सहयोगियों से 12 से 15 सीटों की उम्मीद थी, लेकिन उसे केवल दो सीटें मिलीं। इससे निराश होकर सपा ने वहां अपनी दिलचस्पी कम कर दी।
मध्य प्रदेश
आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए, जहां सपा इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी। सपा ने कुछ सीटों की मांग की, लेकिन कांग्रेस ने उसे तवज्जो नहीं दी। जम्मू-कश्मीर
कश्मीर में सपा गठबंधन के तहत सीट चाहती थी, लेकिन जब बात नहीं बनी, तो उसने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। जानकारों का मानना है कि यदि सपा नेकां-कांग्रेस गठजोड़ का हिस्सा होती, तो चुनावी नतीजे और बेहतर हो सकते थे।