script‘युद्ध होता है तो सेना को बता देंगे पकिस्तान का चप्पा-चप्पा, नहीं छोड़ेंगे बॉर्डर’, फौज के साथ फौजी हैं राजस्थान में यहां के लोग | After 1971 India Pakistan War Thar Ke Veer's Ready To Support Indian Army Real Hero Of Rajasthan | Patrika News
बाड़मेर

‘युद्ध होता है तो सेना को बता देंगे पकिस्तान का चप्पा-चप्पा, नहीं छोड़ेंगे बॉर्डर’, फौज के साथ फौजी हैं राजस्थान में यहां के लोग

Rajasthan News: 1971 के युद्ध में उनके भाई और उन्होंनेे पाकिस्तान में रहते हुए भारतीय सेना का पूरा साथ दिया था। वे कहते हैं कि युद्ध होता है तो हम सेना को पाक का चप्पा-चप्पा बता देंगे।

बाड़मेरMay 09, 2025 / 10:06 am

Akshita Deora

India-Pakistan War News: भारत पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान के 1965 और 1971 में दांत खट्टे कर चुका है। सेना जब यहां मोर्चा संभालती है तो यहां के मजबूत इरादे के लोग बॉर्डर के गांवों से हटते या गांव छोड़ते नहीं है, वे सेना के साथ खड़े होकर लड़ने को बंदूक तक उठा लेते है। 1965 और 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान को परास्त करने में सैकड़ों स्थानीय लोगों की वीरता सुनाते हुए सेना को फक्र होता है।

जोश-जूनून और जज्बा

थार के वीर के संयोजक रघुवीर सिंह तामलौर बताते हैं कि वे तामलौर गांव से है। हमारे पुरखों ने सेना के साथ खड़े होकर साथ दिया था। आज भी जरूरत होगी तो हम तैयार है। पाक के छाछरो से आए हुए पदमसिंह सोढ़ा कहते हैं कि उनका परिवार पाकिस्तान में पूरी मिल्कियत छोड़कर आया था। 1971 के युद्ध में उनके भाई और उन्होंनेे पाकिस्तान में रहते हुए भारतीय सेना का पूरा साथ दिया था।
यह भी पढ़ें

ब्लैकआउट के दौरान राजस्थान का ये दूल्हा बना चर्चा का विषय, जिम्मेदार नागरिक की निभाई भूमिका तो ताली बजाने लगे लोग

पाकिस्तान ने दो लाख का ईनाम घोषित किया था। वे तब से भारत में आए हुए हैं। वे कहते हैं कि युद्ध होता है तो हम सेना को पाक का चप्पा-चप्पा बता देंगे। बाखासर के रतनसिंह कहते हैं कि उनके पिता बलवंतसिंह ने जिस तरह 1971 के युद्ध में पाक के दांत खट्टे करवा दिए थे, वे और उनका पूरा परिवार आज भी तैयार हैं। 1971 के युद्ध में भी बॉर्डर का गांव नहीं छोड़ा था और आज भी नहीं छोड़ेंगे। सेना के साथ तब भी डटे रहे थे और आज भी डटे रहेंगे।

1971 का इतिहास जिस पर गर्व

3 दिसंबर 1971 भारत ने बाखासर की सीमा से पाकिस्तान की ओर कूच किया तो ब्रिगेडियर भवानीसिंह को रेगिस्तान के धोरों में सबसे बड़ी मुश्किल रास्ते तलाशने की थी। तब पाकिस्तान में डकैती करने के लिए जाने वाले बलवंतसिंह बाखासर के पास सेना पहुंची। ताज्जुब कीजिए कि उन्होंने तत्काल ही सेना के साथ खुद को कर लिया और 3 दिसंबर से 11 दिसंबर तक वे सेना के साथ रहे और छाछरो तक का रास्ता बताकर भारत का तिरंगा फहराया। ढोक के चतरसिंह सोढ़ा ने 1971 के युद्ध में सेना पूरे इलाके में थी। सेना के पास राशन सामग्री की जरूरत थी।
सरपंच चतुर सिंह ने 24 ऊंटों पर राशन सामग्री एकत्रित कर सेना की हर पोस्ट पर पहुंचाई। उनके कई ऊंट व साथी जख्मी भी हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तीन महीने तक लड़े। तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने शौर्यचक्र से सम्मानित किया। चौहटन के हेमसिंह ने 1971 की लड़ाई में लड़ाकों को एकत्रित किया। उन्होंने पाकिस्तान की आर्मी को आगे बढ़ने से रोके रखा। भारतीय सेना ने पहुंचकर मोर्चा संभाल लिया।

Hindi News / Barmer / ‘युद्ध होता है तो सेना को बता देंगे पकिस्तान का चप्पा-चप्पा, नहीं छोड़ेंगे बॉर्डर’, फौज के साथ फौजी हैं राजस्थान में यहां के लोग

ट्रेंडिंग वीडियो